देहरादून। कांग्रेस की राजनीति में उत्तराखंड के सबसे बडे़ चेहरे हरीश रावत की बडे़ अंतर से हार ने सबको चैंका दिया है। मोदी लहर के बीच उत्तराखंड में जिस सीट पर भाजपा को सबसे ज्यादा टक्कर मिलने की उम्मीद की जा रही थी, वो नैनीताल सीट थी।
इसकी वजह, सियासत के धुरंधर हरीश रावत की इस सीट पर मौजूदगी थी, लेकिन सारे आकलन गलत साबित हुए। हरीश रावत हार की उसी पीड़ा से इस वक्त दो चार हैं, जैसी 2017 में सीएम रहते हुए किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण से मिली थी। इसके साथ ही सीट के उनके चुनाव पर एक बार फिर से सवाल उठ रहे हैं। हाईकमान को लगभग झुकाते हुए हरीश रावत ने हरिद्वार की जगह नैनीताल से चुनाव लड़ना तय किया था, लेकिन वह न खुद जीत पाए और न ही कांग्रेस के चेहरे पर मुस्कान ला पाए।
दो जगह से चुनाव लड़ने का एकदम नया दांव खेला था
2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत ने उत्तराखंड की चुनावी राजनीति में दो जगह से चुनाव लड़ने का एकदम नया दांव खेला था। 2016 के सत्ता संग्राम के बाद हुआ यह चुनाव हरीश रावत की प्रतिष्ठा से सीधे जुड़ा था। इसकी वजह ये थी कि सीएम रहते हुए उन्होंने मोदी-शाह की जोड़ी से सीधे टक्कर ली थी। किच्छा में राजेश शुक्ला और हरिद्वार ग्रामीण में यतीश्वरानंद जैसे अपेक्षाकृत नए उम्मीदवारों से वह चुनाव हार गए थे। तब माना गया था कि हरीश रावत का सीटों का चयन गलत रहा।
इसकी जगह वह पहाड़ की केदारनाथ या किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ते, तो जीत जरूर मिलती। नैनीताल लोकसभा सीट को लेकर भी अब ये सवाल उठ रहा है। हरीश रावत ने पहले हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में चुनाव की तैयारी की थी। हाईकमान का भी ये मानना था कि हरीश रावत हरिद्वार में ज्यादा मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकते हैं। मगर ऐन वक्त पर हरीश रावत नैनीताल सीट के लिए अड़ गए। तमाम समीकरणों को देखते हुए हरीश रावत ने नैनीताल सीट को अपने लिए ज्यादा मुफीद माना था, लेकिन उन्हें वहां भी बहुत करारी हार नसीब हुई है।