देहरादून। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद पहली बार किसी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। राज्य बनने के बाद चार विधानसभा चुनावों में प्रीतम सिंह का विजय रथ नहीं रुका, मगर इस बार मोदी मैजिक ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रीतम को पराजय के दर्शन भी करा दिए। इससे पहले, उन्होंने अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1996 के विधानसभा चुनाव में हार का स्वाद चखा था।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने 1991 में पहला विधानसभा चुनाव चकराता सीट से लड़ा था, लेकिन वह हार गए थे। इसके बाद, 1993 के चुनाव में वह इस सीट से विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे थे, लेकिन 1996 के चुनाव में वह अपनी विजय को बरकरार नहीं रख पाए थे। राज्य बनने से पहले प्रीतम का चुनावी सफर उतार और चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन राज्य बनने के बाद जीत का सिलसिला चल पड़ा।
वह 2002, 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में लगातार जीते और विधायक बने। इस जीत में 2007 और 2017 के चुनाव भी रहे, जबकि प्रदेश में भाजपा की सत्ता बनी। राज्य बनने के बाद पहली हार पर प्रीतम सिंह सिर्फ इतना कहते हैं कि जब कोई चुनाव लड़ता है, तो हार जीत उसके हाथ में नहीं होती। वह सिर्फ चुनाव लड़ता है और जनता निर्णय देती है। इस हार को वह खुले दिल से स्वीकार करते हैं।
प्रीतम, प्रदीप हार कर भी नुकसान में नहीं
कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह टिहरी और प्रदीप टम्टा अल्मोड़ा सीट से भले ही चुनाव हार गए हों, लेकिन उन्हें हारकर भी बहुत नुकसान नहीं है। प्रीतम सिंह चकराता के विधायक हैं, जबकि प्रदीप टम्टा का राज्यसभा में अभी कार्यकाल बचा हुआ है। कांग्रेस ने अपने दोनों दिग्गज नेताओं को अलग अलग जिम्मेदारियों से बंधे होने के बावजूद चुनाव मैदान में उतारा था। इसके पीछे ये ही मंशा थी कि चुनाव में वे भाजपा के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर देंगे, लेकिन मोदी लहर में दोनों नेताओं को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है।