हिमालयी कॉन्क्लेव दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं- किशोर

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देहरादून। संवाददाता। हिमालयन कॉन्क्लेव से सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि हिमालयी राज्यों के साथ साथ ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज से पीड़ित दुनिया को बहुत अधिक उम्मीदें थी। वनाधिकार आंदोलन के कार्यकर्ताओं को भी आशा थी कि वनाधिकार आंदोलन की 10 मांगों में से कुछ पर तो इस कॉन्क्लेव के दौरान सरकार की तरफ से सकारात्मक रुख दिखाई देगा। लेकिन अफसोस है कि ये कॉन्क्लेव पूरी तरह से झूठ, आडम्बर और दिखावे से आगे एक कदम भी नहीं बढ़ पाया है।

वनाधिकार आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ कांग्रेसी नेता किशोर उपाध्याय का कहना है कि पूरा देश जानता है कि इस तरह की कॉन्क्लेव की शुरुआत हिमाचल प्रदेश ने 2009 में ही कर दी थी। शिमला में आयोजित, दो दिवसीय कॉन्क्लेव में राजनेताओं के अलावा हिमालय क्षेत्र में कार्यरत 350 विशषज्ञों, तकनीति संस्थाओं, गैर राजनैतिक विशेषज्ञों, तथा कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया था तथा कॉन्क्लेव के अंत में शिमला घोषणा (डिक्लेरेशन) के नाम से एक दृष्टि पत्र दुनिया के सामने प्रस्तुत किया गया था।

शिमला में हुई पहली हिमालयन कॉन्क्लेव के विपरीत, मसूरी में हुई बहुप्रचारित हिमालयन कॉन्क्लेव के अंत में न तो कोई कार्ययोजनाए दृष्टि पत्र ही जनता के सामने रखा गया और न ही यह स्पष्ट हो पाया है कि यह कॉन्क्लेव आयोजित क्यों की गई थी। हिमालयी राज्यों के मात्र चार मुख्यमंत्रीयों की उपस्थिति के अलावा हिमालयी क्षेत्रों में कार्यरत तकनीकी संस्थाओं, विशेषज्ञों की अनुपस्थिति इस कॉन्क्लेव के महत्व पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। वन और पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हिमालयी क्षेत्र के बारे में चर्चा हो रही हो और उसमे न तो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री सचिव उपस्थित थे और न ही राज्यों के वन एवं पर्यावरण मंत्रियों को ही तबज्जो दी गयी थी। यही नहीं इस तथा कथित सम्मेलन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का उपस्थित न होना भी कई सवाल खड़ा कर रहा है।

उन्होने कहा कि वनाधिकार आंदोलन ने आमंत्रित सभी अतिथियों को पत्र के साथ 10 सूत्रीय मांग पत्र देते हुए निवेदन किया था कि इस कॉन्क्लेव में वनाधिकार आंदोलन की मांगों को भी शामिल किया जाए तथा पांच सदस्य प्रतिनिधि मंडल को मिलने का समय दिया जाये, लेकिन अफसोस की बात है कि कॉन्क्लेव के आयोजकों या आमंत्रित नेताओं की तरफ से इस दिशा में कोई सकारात्मक जबाब नहीं आया जो कि लोकतान्त्रिक देश में अनुचित है।

वनाधिकार आंदोलन सरकार के इस रवैये के खिलाफ बहुत जल्दी हिमालयी क्षेत्रों में निवासरत जनता का हिमालयन कॉन्क्लेव आयोजित करेगी। जिसमें हिमालयी राज्यों में कार्यरत तथा हिमालयी लोगों के हित में सोचनेख्नलिखने व पढ़ने वाले विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाएगा।

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