उन्होंने कहा पिथौरागढ़ व चंपावत में उप्र के जमाने में बने तो कई ऐसे आवासीय भवन हैं है जो आज भी खाली हैं।
प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में 1000 तो जूनियर हाईस्कूलों में करीब 8000 शिक्षक कम हैं । अगर सभी खाली पद भर दिए जाएं तो बहुत से शिक्षक इन खाली भवनों में रहने को तैयार हो सकते हैं।
देहरादून (संवाददाता) : विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक कैप्टेन आलोक शेखर तिवारी का कहना है कि प्रदेश का विद्यालयी शिक्षा विभाग दुर्गम में तैनात शिक्षकों को आवासीय सुविधा देने की दीर्घकालिक योजना बना रहा है। यह एक दीर्घकालिक योजना है, लेकिन सरकार की प्राथमिकता पहले स्कूलों में बुनियादी ढांचा ठीक करने की है। इसके लिए शिक्षा विभाग ने अपनी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) गतिविधियां दोगुनी करदी है ताकि ओएनजीसी आदि कंपनियों जिले गोद लेने और वहां के स्कूलों में सुविधाएं उपलब्ध कराने पर सहमत हो गई हैं। ये कंपिनयां बाद में स्कूलों में स्मार्ट टीवी व कंप्यूटर सुविधाएं भी देंगीं।
उन्होंने कहा पिथौरागढ़ व चंपावत में उप्र के जमाने में बने तो कई ऐसे आवासीय भवन हैं है जो आज भी खाली हैं। प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में 1000 तो जूनियर हाईस्कूलों में करीब 8000 शिक्षक कम हैं । अगर सभी खाली पद भर दिए जाएं तो बहुत से शिक्षक इन खाली भवनों में रहने को तैयार हो सकते हैं। बता दें कि इसी साल जून में नैनीताल हाईकोर्ट ने यह कहते हुए सरकार के विलासिता की चीजें खरीदने पर रोक लगा दी थी कि यह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि सरकारी स्कूलों में फर्नीचर , ब्लैक बोर्ड , शौचालय आदि की सुविधाएं मुहैया करा दी जाती। हालांकि बाद में अदालत ने अपने आदेश में यह छूट दे दी थी कि सरकार जरूरी चीजें खरीद सकती है। तब से विद्यालयी शिक्षा विभाग स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश कर रहा है।
बता दें कि प्रदेश के 17 हजार से ऊपर स्कूलों में फर्नीचर, ब्लैक बोर्ड, पेयजल व शौचालय की सुविधाएं नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो सीएसआर सहयोग अभी केवल योजना के स्तर पर ही है जिसमें कंपनियों ने केवल धन उपलब्धकराने की सहमति भरी है। हाल में ही शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने सचिवालय में सीएसआर को लेकर कंपनियों के साथ बैठक भी की थी और कंपनियों से काम में तेजी लाने को कहा था। सीएसआर गतिविधियों के प्रभारी अपर परियोजना निदेशक मुकुल सती का कहना है कि विभाग को ऊधमसिंह नगर में 7500 व हरिद्वार में 4500 कुर्सियां व मेज मिलने पर सहमति मिली है। प्रदेश में 15330 प्राइमरी व 8197 अपर प्राइमरी स्कूलों में फर्नीचर की जरूरत है।