प्रदेश के 6300 सेब उत्पादकों को राहत,बगीचे से ही हो रही है खरीद

0
73

Purchase of apples started in other villages including disaster affected Arakot

देहरादून।  आपदा से प्रभावित उत्तरकाशी के आराकोट सहित अन्य गांवों के सेब उत्पादक किसानों को राहत मिल गई है। सहकारिता के जरिए बाजार मूल्य से करीब 20 प्रतिशत अधिक की दर पर यहां सेब की खरीद शुरू हो गई है। इसी तरह हर्षिल के सेब उत्पादकों सहित प्रदेश में करीब 6300 किसान हैं। जिनकी फसल बिना झंझट के बगीचे से ही सीधे बाजार तक पहुंचाने की सुविधा मिल गई है।

उत्तरकाशी आपदा के कारण सड़क टूटने से आराकोट के सेब उत्पादकों को बाजार तक सेब पहुंचाने की समस्या थी। राज्य समेकित सहकारिता परियोजना के तहत बनी नौ गांव सहकारी क्रय विक्रय समिति ने यहां एक कोल्ड स्टोरेज के साथ मिलकर इनके सेबों की खरीद शुरू कर दी है। सेब उत्पादक इससे पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तक से अपनी गुहार लगा चुके थे। इसके साथ ही हर्षिल के सेब उत्पादकों की चिंता भी समाप्त हो गई है। हर्षिल का सेब अक्तूबर के पहले पखवाड़े में पकता है। इन उत्पादकों के सेब की खरीद भी सहकारिता के माध्यम से की जाएगी।

दरअसल राज्य समेकित सहकारी परियोजना के तहत सेब उत्पादकों को सहकारी समितियों से जोड़ा जा रहा है। इसके बाद यह सहकारी समिति ही सेब की दरों का निर्धारण कर खरीद का काम करती है। परियोजना के तहत उत्पादकों को बेहतर पौध से लेकर भू सुधार, विपणन आदि की जानकारी दी जा रही है। परियोजना के निदेशक आनंद शुक्ला के मुताबिक अब तक उत्तरकाशी और देहरादून के 6300 किसान इससे जोड़े जा चुके हैं। अब नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी और चमोली के सेब उत्पादकों को भी इस परियोजना में शामिल किया जाएगा।

उत्तरकाशी और देहरादून में होता है 85 प्रतिशत उत्पादन
प्रदेश में कुल सेब उत्पादन का करीब 85 प्रतिशत का उत्पादन उत्तरकाशी और देहरादून में चकराता, कालसी में होता है। करीब दस प्रतिशत का उत्पादन नैनीताल और शेष पांच प्रतिशत का उत्पादन अन्य जिलों में होता है। देश में करीब 20 लाख टन हर साल सेब का उत्पादन होता है। जम्मू कश्मीर, हिमाचल, अरुणांचल और उत्तराखंड देश के मुख्य सेब उत्पादकों में शामिल है। इसमें उत्तराखंड का हिस्सा करीब 1.6 प्रतिशत है।

दरवाजे पर ही खरीददार, मंडी में मोल भाव से निजात
नौ गांव सहकारी क्रय विक्रय समिति ने किसानों से बाजार मूल्य से 20 प्रतिशत अधिक पर सेब की खरीद की है। सेब उत्पादकों को इसके लिए न तो मंडी तक जाने की जहमत उठानी पड़ी और न ही इन्हें किसी से मोलभाव करना पड़ा। सेब का मूल्य भी सहकारी समिति ने किसानों के साथ मिलकर तय किया। इससे उत्पादकों को कम दाम पर सेब बेचने की समस्या से भी निजात मिल गई है।

LEAVE A REPLY