देहरादून। संवाददाता। उत्तराखंड अब युवावस्था में कदम रखने जा रहा है, लेकिन हालात आज भी वैसे ही हैं, जैसे राज्य गठन के वक्त थे। पर्वतीय क्षेत्रों में न तो सुविधाएं उपलब्ध पाईं और न रोजगार के अवसर ही सृजित हो पाए। नतीजतन, वहां से पलायन की रफ्तार थमने की बजाए और तेजी से बढ़ी है। गुजरे 17 सालों में राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड अब तक नहीं बन पाया है। लिहाजा, राज्य को बचाने और संवारने के लिए फिर से जोरदार संघर्ष की आवश्यकता है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की पहल पर देहरादून नगर निगम सभागार में आयोजित श्उत्तराखंड विमर्शश् में यह बात उभरकर सामने आई। विमर्श में विभिन्न दलों और संगठनों के प्रतिनिधियों ने गुजरे 17 सालों में क्या खोया-क्या पाया और भविष्य की चुनौतियों पर मंथन किया।
कार्यक्रम संयोजक किशोर उपाध्याय ने कहा कि नौ नवंबर को उत्तराखंड 18 वें साल में प्रवेश करने जा रहा है। लिहाजा, अब उत्तराखंड उदय के मकसद से सरकार के सामने ठोस एजेंडा रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मंथन से जो भी बातें निकलेगी, उसे सरकार के समक्ष रखा जाएगा।
भाकपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य समर भंडारी ने कहा कि राज्य में स्थिति बद से बदतर हो गई है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क जैसे मूलभूत सवाल उठाते हुए राज्य में सत्तासीन रही दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि राज्य के इन हालात के लिए जितने दोषी कांग्रेस, भाजपा हैं, उतने ही दोषी तीसरे विकल्प की बात कहने वाले भी हैं। उन्होंने क्षेत्रीय दल उक्रांद की भूमिका पर भी सवाल उठाए।
उक्रांद के संरक्षक काशी सिंह ऐरी ने कहा कि उत्तराखंडवासियों ने खुशहाल राज्य का जो सपना देखा था, वह अभी तक आकार नहीं ले पाया है। समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रो.एसएन सचान ने कहा कि पक्ष-विपक्ष और ब्यूरोक्रेसी के गठजोड़ के चलते इस राज्य की दुर्दशा हुई है।
महिला मंच की नेता निर्मला बिष्ट ने कहा कि इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि 17 साल बाद हम यह सोच रहे हैं कि राज्य ने क्या खोया और क्या पाया। उन्होंने जल-जंगल-जमीन पर अधिकार के साथ ही स्थायी राजधानी का मसला उठाया।
अध्यक्षता करते हुए महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत ने कहा कि जिस प्रकार सभी लोगों ने उत्तराखंड की लड़ाई लड़ी, उसी तरह शहीदों व आंदोलनकारियों के सपनों के अनुरूप राज्य बनाने के लिए फिर से संघर्ष करना होगा। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
इस मौके पर पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी, बसपा के रमेश कुमार, कुमाऊं विवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष गणेश उपाध्याय, सपा नेता महितोष मैठाणी, कांग्रेस नेता शंकर चंद्र रमोला समेत विभिन्न दलों और राज्य आंदोलनकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने विचार रखे। संचालन शांति प्रसाद भट्ट ने किया। अलबत्ता, भाजपा का कोई प्रतिनिधि कार्यक्रम में नजर नहीं आया।
द्वितीय सत्र में कई प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें राज्य के सुदूरवर्ती गांवों में मूलभूत सुविधाओं के विकास के साथ ही रोजगार के अवसर सृजित करने, पहाड़ की महिलाओं के सिर से बोझ कम करने के लिए उन्हें ध्यान में रखकर योजनाएं बनाने, पर्वतीय क्षेत्रों में औद्येागिक इकाइयां खोलने, पलायन थामने को प्रभावी नीति बनाने, प्राकृतिक संपदा की लूटखसोट और भ्रष्टाचार रोकने के लिए ठोस कदम उठाने, राज्य में छोटी जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने, राज्य को करों में राहत देने, सतत विकास की नीति बनाने, जनभावनाओं के अनुरूप गैरसैण राजधानी बनाने समेत 33 प्रस्ताव शामिल हैं।