धर्मनगरी हरिद्वार के होटलों-धर्मशालाओं की क्षमता सवा लाख, ठहरे हैं मात्र 21 हजार यात्री

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धर्मनगरी में बने होटलों और धर्मशालाओं में करीब एक लाख बीस हजार यात्रियों को ठहराने की क्षमता है, लेकिन कोविड एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) की सख्ती से श्रद्धालुओं ने कदम रोक लिए हैं। फिलवक्त हरिद्वार की धर्मशालाओं और होटलों में प्रतिदिन 18 से 21 हजार श्रद्धालु ही ठहरते हैं।

शहर में लगभग चार सौ धर्मशालाएं हैं। इनमें मौजूद कमरों और धर्मशाला एसोसिएशन के अनुसार लगभग 42 हजार यात्रियों को ठहराया जा सकता है। जबकि छोटे-बड़े करीब साढ़े छह सौ होटल और गेस्ट हाउस भी हैं। होटल एसोसिएशन के आंकड़े के अनुसार इनमें 78 हजार यात्रियों को एक साथ ठहराया जा सकता है।

होटल और धर्मशाला संचालक कुंभ मेले के शुरू होने से बड़ी संख्या में यात्रियों के पहुंचने की उम्मीद भी कर रहे थे। महाकुंभ को शुरू हुए पांच दिन गुजर चुकें हैं, लेकिन होटल और धर्मशाला संचालकों की उम्मीद के अनुसार श्रद्धालु नहीं पहुंच रहे हैं।

धर्मशालाओं में केवल तीन हजार के आसपास ही लोग ठहरे हैं। वहीं, 18 हजार टूरिस्ट होटलों में रुके हैं। इससे होटल और धर्मशाला संचालकों में मायूसी है। दरअसल यात्रियों के नहीं आने की वजह कोरोना का बढ़ता संक्रमण और प्रशासन के सख्त नियम बाधा है।

हरिद्वार प्रशासन की ओर से भी कुंभ मेले में सीमाओं पर एंटीजन टेस्ट से प्रवेश दिया जा रहा है। जबकि धर्मशालाओं और होटलों में ठहरने के लिए आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता है। ऐसे में धर्मशाला संचालक कमरे नहीं दे रहे हैं, लेकिन होटल एसोसिएशन के सदस्य एंटीजन टेस्ट पर कुंभ में प्रवेश के आधार पर कमरा देने का तर्क दे रहे हैं। कुंभ मेले में प्रशासन की ओर से शुरू से ही श्रद्धालुओं को सकारात्मक की बजाए नकारात्मक संदेश देकर डराने का काम किया है। इसके कारण श्रद्धालु कुंभ नगरी नहीं आ रहे हैं। अगर अब भी श्रद्धालुओं को कुंभ नगरी में लाना है तो सकारात्मक संदेश देना होगा।
-आशुतोष शर्मा, अध्यक्ष, होटल एसोसिएशन

सीमाओं पर एंटीजन टेस्ट कर कुंभ मेले में प्रवेश दिया जा रहा है। जबकि होटल और धर्मशालाओं में ठहरने के लिए आरटीपीसीआर की बाध्यता है। धर्मशालाओं में रुकने के लिए चेकिंग की जा रही है। बिना आरटीपीसीआर नेगेटिव रिपोर्ट के कमरा देने पर कार्रवाई की प्रावधान है। कुंभ मेले में आने की पूरी छूट दी जाए। जैसे चुनावी सभाओं में दी जा रही है।
-शंकर पांडे, महामंत्री, देवभूमि धर्मशाला प्रबंधक सभा

 

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