कष्टों से मुक्ति का पथ- श्री हरिनाम संकीर्तन में झूम उठे भक्तगण

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देहरादून। श्री हरिनाम संकीर्तन सम्मेलन शिलान्यास का शनिवार को तीसरा दिन रहा।
पिछले 2 दिन से श्री चैतन्य गौड़िय मठ में हरिनाम संकीर्तन सम्मेलन व शिलान्यास का कार्यक्र्रम चल रहा है। जिसमंे सोमवार को विषय ‘साधु संत की महिमा’ का वर्णन किया गया। स्वामी मुनी ने बताया साधु शब्द का संबंध शरीर से नहीं बल्कि मन से है। जो व्यक्ति जितना प्रतिशत मन से सधर्मियों और भगवान का संघ करता है, वो उतना बड़ा साधु होता है फिर चाहे वो सन्यासी हो, बच्चा, बूढ़ा, जवान, ब्रहमण, सूत्रीय कुछ भी हो सकता है। उन्होंने कहा साधु के कपड़े पहनने से कोई साधु नहीं बन जाता।

उसका आचरण साधु जैसा होना चाहिए। आजकल साधु के कपड़े पहने लोग कई प्रकार के गलत काम करते हैं। साधु वो है जिसकी सधुत्वत भगवान से मिलती हो जिसका 24 घंटे भगवान के लिए हो जिसका खुद के लिए कुछ न हो उसकी पूरी जिदंगी भगवान को समर्पित हो उसे साधु कहते हैं और जो उनके पास जाता है उन्हें वो ज्ञान देते हैं कि आप कौन हैं, भगवान कौन हैं, उनसे आपका क्या रिश्ता सम्बंध है, उनके प्रति आपका क्या क्र्तवय है।

भगवत विषय में ज्ञान देना उसको भगवान की सेवा में लगाते हैं, उन्होंने कहा माता-पिता की सेवा से सबकी सेवा हो जाती है, माता-पिता कौन हैं? जो जन्म देता है, जो पालन करता है, जो रक्षा करता है। जन्म देने वाला भगवान ही है क्योंकि मनुष्य का शरीर भगवान की ही देन है। साथ ही बच्चें को जन्म देने की जो परिक्रिया है वो भी भगवान द्वारा बनाई गई है। मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है ना बालिका न बालक न रंग, भगवान की बनाई हुई प्रतिक्रिया है जो जन्म देने वाले भी वही हैं। पालन करने वाले भी वही। उन्हांेने बताया भगवान ही सबका पालन पोषण करते हैं यदि भगवान द्वारा बनाई गई पांच वस्तुंए आकाश, मिट्टी, जल, वायु, अग्नि कुछ भी न हो तो सारा संसार खत्म है तो वास्तविकता में पांच चीजों द्वारा ही पालन होता है इसलिए पालन सबका भगवान करते हैं। हम माता पिता की रक्षा करते हैं लेकिन आखिर में भगवान के पास ही जाते हैं। माता पिता की सेवा के बिना कोई व्यक्ति कल्याण प्राप्त नहीं कर सकता। इस जगत के माता-पिता और परमपिता दोनो की सेवा साथ चलती है।

उन्होने सूरदास जी के दोहा बोलते हुए कहा कि ‘‘जिन जन दियो, ताॅही विसराओ, एसो नमक हरामी- अर्थात; जिस भगवान ने शरीर दिया है सब कुछ दिया उसी को भूल गए, हम उसी की सेवा नहीं कर रहे हैं ,उसको नमक हरामी कहते हैं। उसी विषय में चैतन्य महाप्रभु ने लिखा है- ‘‘जगतेर पिता कृष्ण, ये न भजे बाप, पितृ द्रोही पातथी, जन्मे-जन्मे ताप’’ अर्थात- जो माता पिता की सेवा नहीं करता वो पित्र दोही का पात्र है, वो पित्र दोह करने वाला पादिक है,

उसे हर जनम मे कष्ट होगा। स्वामी मुनि ने बताया ये सब बातें साधु लोग बताएंगे, कहीं किसी विवि में नहीं पड़ने को मिलेगा, उन्होंने बताया इसमें तुलसीदास जी ने लिखा है ‘‘बिंदु संघ विवेक न होवे’’ अर्थात- जबतक सत्संग में नहीं जाओगे आपको इन बातों का ज्ञान नहीं होगा। उन्होंने बताया साधु वो है जिसका जीवन भगवान के लिए है। सत्यकल्याण के लिए है, जीवों के दु;ख दूर और कल्याण करने में जिसने अपनी जिंदगी लगा दी। उसका संघ उसे जो करने को बोलते हैं वो वैसा ही करता है।

कई साधु नकल करते है उसको अनुकरण करते हैं। जैसा साधु बोलते हैं उनके आदेश का पालन करना, उनका संघ करना, आप उनके पास रह रहे हैं इसकी कोई महिमा नहीं , ज्यादा वो है हजारों मीलों दूर बैठे हैं लेकिन उनकी हर एक बात याद कर रहे हैं। संसार में जैसा हो रहा है वैसा करने का प्रयास कर रहे हैं। उसको संघ कहते हैं। अगर ऐसा साधु संझा करे उसकी महिमा क्या है, साधु के पास जाके हमें पता लगे मै कौन हंू। इस संसार में किस लिए आया हूं, भगवान कौन है उनसे मेरा क्या रिश्ता है, संसार और जीवों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, हमें उनका कल्याण कैसे करना है। भगवान का भजन कैसे करना है, जो बताया है अगर हम वैसे चले तो हमारी स्थति साधु जैसी हो जाएगी। साधु कहता है वो एक संसार की जितनी भी अशक्ति है, पैसा, स्त्री, धन और प्रतिष्ठा, मान, सम्मान इससे उठ के जो भगवानमय हो जाता है, भगवान का दास बन जाता है, भगवान के दास की क्या महिमा है, उसका जो वस्तिवक स्वरूप है, हम कृष्ण के नृत्य दास हैं और कृष्ण के गुरू धाम से आएं है और हम इस दुखमय संसार से उठ के उस आनंदमय धाम में चले जाते हैं। यह महिमा है साधु संत की जो उसके कहने के साथ चलेंगे तो दुखमय संसार से छुटकारा पाके आनंदमय धाम में चले जाएंगे।

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