परम्परागत ताल में बज उठे सैकड़ों ढोल दमाऊं

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हरिद्वार। त्रिलोक चन्द्र भट्ट
उत्तराखण्ड के ढोल वादन को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिये आयोजित कार्यशाला के आखिरी दिन एक ही स्थान पर एक ही लय और ताल में सामूहिक रूप से ढोल वादन का पहला राज्यस्तरीय रिकार्ड 9 जून 2017 को हरिद्वार में बना। यह उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि भारत का भी एक ऐसा रिकार्ड है जिसमें देश के किसी हिमालयी राज्य में एक स्थान पर, एक ही वेशभूषा में एक साथ एक ही लय और ताल पर सामूहिक ढोल वादन हुआ।

सिर पर परंपरागत पहाड़ी टोपी तथा स्वेत अंग वस्त्र पर लाल और पीले कमरबंदों से सजे सैकड़ों कलाकारों जब कार्यशाला के समापन सत्र में एक लय और ताल पर अपने अपने ढोल-दमाऊॅ पर वादन आरंभ किया तो पूरे सभागार में एक अद्भुद मनोहारी दृश्य दिखाई दिया। पूरी कार्यशाला के केन्द्रं बिन्दु रहे प्रीतम भर्तवाण ने मंच से जैसे ही शिव धुंयाल और गणेश धुंयाल की तालों के साथ ढोल पर थाप दी वैसे ही लकड़ी, पीतल और तांबे के सैकड़ों ढोलों की समवेत धमक से पूरा सभागार गूंज उठा। वहॉं मौजूद हर कोई व्यक्ति उत्तराखण्ड की संस्कृति के इस गौरवशाली, अद्भभुत और अविस्मरणीय दृश्य को देख कर रोमांचित हो उठा। 6 से 80 वर्ष की तीन-तीन पीढि़यों के कई कलाकारों ने एक साथ ढोल-दमाऊॅ पर अपना हुनर दिखाया।

राज्य में ढोल वादन की इस अनूठी और पहली वृहद् कार्यशाला के गवाह बने हरिद्वार के प्रेमनगर आश्रम के गोवर्धन हाल में 6 से 9 अगस्त तक उत्तोराखण्ड के विभिन्न जिलों से आये 1200 से अधिक ढोलियों का जमावड़ा रहा। यहॉं संस्कृति विभाग के तत्वावधान और लोक गायक प्रीतम भर्तवाण के नेतृत्व में 831 ढोलियों ने 17 गुरूजनों सहित एक ही लय और ताल में चार दिन तक ढोल वादन का अभ्यास कर कार्यशाला के समापन सत्र में अपनी शानदार प्रस्तुति दी जिसमें 1001 ढोल वादक शामिल रहे। चार दिन तक ‘नमों नाद’ के नाम से आयोजित कार्यशाला में ढोल पर बजाई जाने वाली नौबत, शबद, धुंयाल, चैरात, सुल्त नी ताल, पंडौ नृत्यम, देवी-देवता का आहवान, गढ़वाल कुमाऊँ और जौनसार के वादकों की विशिष्ट शैली के बारें में बताते हुए प्रदर्शन के लिये एक लय व ताल तैयार की गई।

उत्तराखण्ह में कदम कदम पर वाणी’और पाणी’की विविधता, गंगा-यमुना तथा भिलंगना-भागीरथी घाटी की विविधता के बीच ‘नमों नाद’ कार्यशाला का मुख्यर उद्देश्य सभी क्षेत्रों के ढोल वादकों को लय और ताल में बांधना था। राजनैतिक विश्लेषकों ने भले ही आयोजन के कई मायने निकाले हों लेकिन उत्तंराखण्ड के ढोल वादन की एक लय ताल बनाने और उसे राष्ट्रीय और अन्त र्राष्ट्रीय पहचान देकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराने तैयारी के लिए दस्तावेजीकरण करना भी इस आयोजन का मकसद था।

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