सीएसआईआर-आईआईपी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम) देहरादून के वैज्ञानिकों ने औद्योगिक वेस्ट वाटर के ट्रीटमेंट के लिए सस्ता व सरल तरीका खोजा है। यूकेलिप्टस की लकड़ी से तैयार बायोचार से कैमिकल वेस्ट का पक्का उपचार होगा और पानी को उचित शोधन के बाद फैक्ट्रियों से छोड़ा जा सकेगा। पेट्रोलियम रिफायनरी से निकलने वाला वेस्ट वाटर पर्यावरण के सबसे बड़े हानिकारक तत्वों में से एक है।
यह सही तरह से शोधित न होने पर भूमिगत जल, जलाशयों व नदियों तक को प्रदूषित कर उसे जहरीला बना देता है। उद्योगों के वेस्ट वाटर शोधन में प्रयुक्त होने वाली तकनीक जटिल व महंगी है। आईआईपी वैज्ञानिकों ने यूकेलिप्टस की लकड़ी को पाइरोलिसिस (ताप भंजन) कर बायोचार (कोयले जैसा पदार्थ) बनाया है। वैज्ञानिकों ने यूकेलिप्टस से बने बायोचार में प्रदूषित पानी के शुद्धिकरण की अच्छी क्षमता हासिल की है।
उन्होंने पाया है कि यह व्यावसायिक रूप से प्रदूषित पानी के ट्रीटमेंट का काम बखूबी कर सकता है। बायोचार को न्यूनतम पांच बार तक जल शोधन में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस समय पेट्रोलियम रिफायनरियों से निकले हुए वेस्ट वाटर पानी के शोधन का काम कई चरणों में होता है। पानी को अंतिम रूप से खुले में छोड़ने से पहले एक्टिवेटेड कार्बन से ट्रीट किया जाता है।
एक्टिवेटेड कार्बन कॉमर्शियल होता है और इसे बाजार से महंगे दामों में खरीदा जाता है। जबकि यूकेलिप्टस की लकड़ी से बना बायोचार एक्टीवेटेड कार्बन के मुकाबले कई गुना सस्ता व प्रभावी तत्व है। हानिकारक पदार्थों में आक्सीजन युक्त प्रदूषक जैसे फिनॉल, कार्बनिक अम्ल (नेप्थेनिक एसिड), सल्फर व नाइट्रोजन युक्त यौगिक प्रमुख हैं।
ऐसे प्रदूषकों की बहुत कम मात्रा भी वातावरण में पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं पर दुष्प्रभाव छोड़ते हैं। आईआईपी निदेशक डा. अंजन रे, डा. रघुवीर सिंह, डा. डीवी नाइक, डा. पंकज कन्नौजिया, रुड़की आईआईटी के प्रोफेसर आरके दत्ता का यह शोध इसी हफ्ते अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र एनवायरमेंटल चैलेंज में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ है।