हरिद्वार। श्री पंचदशनाम जूना और उसके सहयोगी अखाड़े अग्नि व आह्वान के संतों की छावनियां भी खाली हो गईं हैं। किन्नर अखाड़े को मेला प्रशासन से भूमि आवंटित नहीं हुई थी। किन्नर अखाड़े की छावनी कनखल में निजी भूमि पर लगी थी।
महाकुंभ में कोविड के कहर के बाद संन्यासी अखाड़ों ने आपात बैठक बुलवाकर कुंभ विसर्जन की घोषणा कर दी थी। इनमें सबसे बड़ा जूना अखाड़ा और उसके सहयोगी अखाड़े शामिल थे। जूना अखाड़े के संतों की छावनी मायादेवी मंदिर परिसर, ललतारौ पुल के पास लगी थी। अग्नि और आह्वान अखाड़ों के संतों की छावनियां मायादेवी मंदिर परिसर में लगाई गई थीं।
शनिवार को कुंभ विसर्जन के एलान के बाद रविवार सुबह से छावनियां खाली होनी शुरू हो गईं। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरि गिरि ने कहा कि श्रद्धालुओं और संतों की जान की रक्षा करना पहला धर्म है। श्री पंच अग्नि अखाड़े के सचिव श्रीमहंत संपूर्णानंद ब्रह्मचारी ने बताया कि जूना के साथ उनके अखाड़े के संतों की छावनियां भी खाली हो गई हैं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की अपील के बाद अखाड़ों ने आपातकालीन बैठक बुलाकर जनहित में कुंभ विसर्जन का फैसला लिया।
कोरोना महामारी से बचाव के लिए कुंभ विसर्जन की घोषणा के बाद श्री निरंजनी और आनंद अखाड़े की छावनियां शनिवार को खाली हो गईं थीं। कल्पवास पर आए संत छावनियां छोड़कर अपने-अपने प्रदेशों और शहरों में रवाना हो गए।
श्री निरंजनी अखाड़े के सचिव एवं मेला प्रभारी श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने बताया कि उनकी ओर से 17 अप्रैल से कुंभ विसर्जन की घोषणा की गई थी। संतों के साथ भंडारी, पुजारी और उनके भक्त भी लौट गए हैं।
कोविड के बढ़ते संक्रमण लगातार लागू हो रहीं पाबंदियों को देखते हुए कुंभनगरी के घाटों पर भीड़भाड़ कम होने लगी है।हरकी पैड़ी छोड़ बाकी घाटों पर श्रद्धालु नजर ही नहीं आए। रविवार को कर्फ्यू था। आने वाले दिनों में भीड़ और कम होने की उम्मीद है।