रुड़की : भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ), देहरादून की ओर से प्रस्तुत की गई वनस्पतियों और जीवों की जैव विविधता रिपोर्ट में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की परिसर में टाइफोनियम इनोपिनटम की खोज हुई, जो अरेसी (अरुम) परिवार से जुड़ा एक औषधीय पौधा (घासनुमा) है। संस्थान के अनुसार यह उत्तराखंड राज्य का पहला रिकार्ड है। दसअसल संस्थान की ओर से डब्ल्यूआइआइ को परिसर में मौजूद 175 साल पुरानी जैव विविधता से संबंधित सूची को पूरा करने का दायित्व दिया गया था।
आइआइटी रुड़की के सीनेट हाल में शुक्रवार को भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने संस्थान परिसर के वनस्पतियों और जीवों की जैव विविधता रिपोर्ट जारी की। यह आइआइटी रुड़की परिसर के जैव विविधता का इस तरह का पहला दस्तावेज है। पांच महीने तक चले इस लंबे वानस्पतिक सर्वेक्षण में पेड़ों, झाड़ियों और जड़ी-बूटियों के साथ-साथ लकड़ी और जड़ी-बूटियों की लताओं से संबंधित पौधों की उपस्थिति का पता चला है। आइआइटी के निदेशक प्रोफेसर अजित कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि संस्थान परिसर के अंदर 237 वंश और 87 विविध पौधों के परिवारों से संबंधित कुल 304 प्रजातियां दर्ज की गई। इनमें से अधिकांश का प्रतिनिधित्व फूल वाले पौधों या एंजियोस्पर्म-291 प्रजातियों की ओर से किया जाता है। जबकि जिम्नोस्पर्म यानी शंकुधारी पौधों का प्रतिनिधित्व नौ प्रजातियों ने किया है। टेरिडोफाइट्स जिसमें फर्न और उनके परिवार शामिल हैं, केवल चार प्रजातियों में पाए गए। बताया कि फूलों के प्रकारों में 140 प्रजातियों के साथ पेड़ सबसे प्रमुख थे। इसके बाद जड़ी-बूटियां-91 प्रजातियां, झाड़ियां-45 प्रजातियां और 28 प्रजातियां लताएं थी। इसके अलावा परिसर में फूलों की विविधता में एक्सोटिक्स का प्रभुत्व है। इनमें से अधिकांश सजावटी प्रजातियां हैं। इस रिपोर्ट में पौधों को छोटे से बड़े के क्रम में दर्शाया गया है। इस दस्तावेज का उपयोग शौकिया प्रकृति प्रेमी और अन्य सभी एक फील्ड गाइड के रूप में भी कर सकते हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डा. धनंजय मोहन ने बताया कि 365 एकड़ में फैले आइआइटी रुड़की परिसर को विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों का समर्थन करने के लिए जाना गया है। इस दस्तावेज का प्रकाशन एक आकर्षक और रंगीन शैली में किया गया है। जोकि परिसर में होने वाली विविध विविधताओं के अनुरूप है। इस मौके पर आइआइटी रुड़की के ग्रीन कमेटी के संयोजक प्रोफेसर अरुण कुमार, प्रोफेसर अवलोकिता अग्रवाल और भारतीय वन्यजीव संस्थान के विज्ञानी डा. आर सुरेश कुमार उपस्थित रहे।