देहरादून। संवाददाता। प्रदेश की भावी पीढ़ी में हुक्के का चलन तेजी से बढ़ रहा है। पहले उनमें सिगरेट का चलन था और वो जहां-तहां सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाते नजर आते थे। लेकिन, अब भावी पीढ़ी अपना अधिकतर समय हुक्का गुड़गुड़ाते बिता रहे हैं। हालांकि स्वास्थ्य के लिहाज से ये दोनों शौक खतरनाक हैं, लेकिन बड़ी समस्या यह है कि कइयों को इस शौक के खतरे का अंदाजा तक नहीं है।
उत्तराखंड युवा तंबाकू सर्वेक्षण के चैंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। पिछले तीन वर्षों में स्कूल जाने वाले छात्रों में हुक्के का इस्तेमाल लगभग 150 गुना बढ़ गया है। 2013 में हुक्के का इस्तेमाल केवल 0.6 प्रतिशत तक सीमित था, जबकि 2016 में यह बढ़कर 1.5 फीसद पहुंच गया है। यह नतीजा उत्तराखंड के 13 जिलों के सर्वे में सामने आया है।
जिसके तहत 49 स्कूलों के आठवीं से बारहवीं कक्षा के 3467 छात्रों को शामिल किया गया था। वल्र्ड लंग फाउंडेशन (दक्षिण एशिया) के अध्यक्ष डॉ. जीआर खत्री का कहना है कि सर्वेक्षण के विभिन्न सूचकांक में अन्य प्रकार के तंबाकू का उपयोग बड़ी चिंता का विषय बना है। यह अच्छी बात है कि उत्तराखंड तंबाकू मुक्त पहल (यूटीएफआइ) ने उत्तराखंड में असर दिखाया है।
वर्तमान तंबाकू उपयोग 2013 में 13 प्रतिशत था, जो अब घटकर 7.4 प्रतिशत हो गया है। सिगरेट पीने वाले 10.5 प्रतिशत से 4.8 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। सर्वेक्षण में सामने आया है कि अधिकतर छात्र मस्ती या जिज्ञासा के कारण धूमपान शुरू करते हैं। कक्षा 11-12 में अध्ययरत छात्र कक्षा 8-10 की तुलना में ज्यादा संवेदनशील हैं।
रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट हुआ है कि तंबाकू के लगभग 16.3 प्रतिशत उपभोक्ता तंबाकू उत्पादों का स्कूल-कॉलेज परिसर के 100 मीटर दायरे में ही इस्तेमाल कर रहे हैं। बताने की जरूरत नहीं है कि यह कानून का उल्लंघन है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि लगभग 53.4 प्रतिशत छात्रों के माता-पिता धूमपान करते हैं, जिनकी देखादेखी बच्चे भी इस अंधकार की तरफ कदम बढ़ाते हैं।