डोकलाम बिवाद: कहाँ खड़ा है भारत!

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प्रोफेसर हर्ष वी पंत  (अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार)

पिछले महीने से चीन के सरकारी मीडिया ने ऐसी बातें की हैं जो बीते कई दशकों से नहीं की गई हैं. उसमें 1962 का ज़िक्र और ‘लड़ाई ही आख़िरी विकल्प है’ जैसी बातें की जा रही हैं. चीन ये चाहता था कि उसकी मनोवैज्ञानिक लड़ाई को देखते हुए भारत अपने रुख को बदल दे लेकिन मुझे लगता है कि अभी तक भारत दबाव में नहीं आया है. भारत की ओर से जो आधिकारिक बयान आए हैं वो काफ़ी संतुलित और शांतिपूर्ण रहे हैं.

भारत-चीन विवाद में स्थिति जस की तस बनी हुई है. भारत के हिसाब से यहां मुद्दा ये है कि चीन सीमा पर यथास्थिति बनाए रखने की भारत और भूटान के साथ हुई संधि से मुकर रहा है और भूटान की सीमा में सड़क निर्माण कर रहा है.

भूटान से अपने संबंधों की वजह से भारत को वहां हस्तक्षेप करना पड़ा. चीन की गतिविधि से भारत के हितों को भी धक्का पहुंचने की आशंका है. भारत का पक्ष ये है कि चीन और भारत एकसाथ अपनी फ़ौजें पीछे करें तो पहले जैसे स्थिति बन जाएगी. वहीं, चीन का ये कहना है कि हम जो कर रहे हैं वो अपनी सीमा में कर रहे हैं और इसलिए भारत को पहले क़दम उठाना होगा.

मेरे ख़्याल से अभी तक दोनों देशों के बीच कोई सामंजस्य दिखाई नहीं देता है. इसे कैसे सुलझाया जाएगा ये अभी तक किसी को समझ नहीं आ रहा है. हालांकि, इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कूटनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन में ये मुद्दा उठाया.

इसके बाद भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में कहा, “हम युद्ध नहीं चाहते हैं. हमें कूटनीति के ज़रिए बातें सुलझानी हैं.” उसके बाद चीन की ओर से भी कुछ सकारात्मक बयान आए. लेकिन चीन ने भारत के ख़िलाफ़ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ने की कोशिश की है.

पिछले महीने से चीन के सरकारी मीडिया ने ऐसी बातें की हैं जो बीते कई दशकों से नहीं की गई हैं. उसमें 1962 का ज़िक्र और ‘लड़ाई ही आख़िरी विकल्प है’ जैसी बातें की जा रही हैं. चीन ये चाहता था कि उसकी मनोवैज्ञानिक लड़ाई को देखते हुए भारत अपने रुख को बदल दे लेकिन मुझे लगता है कि अभी तक भारत दबाव में नहीं आया है. भारत की ओर से जो आधिकारिक बयान आए हैं वो काफ़ी संतुलित और शांतिपूर्ण रहे हैं.

अब देखना ये है कि आगे के संकट से निपटने के लिए क्या भारत तैयार है? दरअसल विवाद चीन और भूटान के बीच है. क्या भूटान के ज़रिए विवाद को ख़त्म किया जा सकता है? अभी तक ऐसे संकेत नहीं मिले हैं. मीडिया के आक्रामक रुख की वजह से चीन के सामने परेशानी ये हो गई है कि चीन की सरकार अपना चेहरा बचाते हुए विवाद से कैसे बाहर आएगी. इतना दबाव बनाने के बाद चीन को ज़मीन पर कुछ न कुछ तो करना होगा. उनको बाहर निकलने का रास्ता तलाशने में बहुत मुश्किल होगी. अगर संघर्ष होता है तो ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

सैन्य शक्ति की बात करें तो भारत से चीन काफ़ी आगे है. बीते तीन दशक से चीन ने अपनी सेना को काफ़ी तैयार किया है. भारत भी तैयार है लेकिन भारत की अपनी बाधाएं रही हैं. डोकलाम की बात करें तो चीन के सामने भौगोलिक तौर पर दिक़्क़तें हैं. वहां भारत के पास बढ़त है. चीन अगर ये सोचता है कि वो डोकलाम में आक्रमण करता है. वहां संघर्ष होगा और चीन भारत पर हावी हो जाएगा तो ये होने वाला नहीं है. मुझे लगता है कि ये चीन को भी पता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि चीन कहीं और परेशानी खड़ी नहीं कर सकता है. भारत और चीन सीमा बहुत लंबी है और कई जगह विवाद हैं. जहां चीन के पास बढ़त होगी वो वहां उकसावे की कोशिश करेगा. ये भारत के लिए जोखिम भरा होगा. यहीं से बात बढ़ने की आशंका रहेगी.                                                                                            (साभार- बीबीसी हिन्दी)

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