बहुप्रतीक्षित उत्तराखंड सीरीज की अंतिम फिल्म, बही: ट्रेसिंग माई एंसेस्टर्स, का प्रीमियर वर्चुअल भारत के यूट्यूब चैनल पर जारी कर दिया गया है। यह दर्शकों को गंगा किनारे एक शानदार यात्रा पर ले जाएगा। यह डॉक्यूमेंट्री हस्तलिखित अभिलेखों को बनाए रखने की एक प्राचीन परंपरा को दिखाती है, जिसने कई परिवारों को सैकड़ों साल पुराने बही के माध्यम से अपने पैतृक मूल की खोज करने में सक्षम बनाया है।
उत्तराखंड की गोद में बसा एक आध्यात्मिक केंद्र, हरिद्वार अनेक सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों, प्रथाओं और परंपराओं का स्रोत और गंतव्य है। हस्तलिखित बही को बनाए रखना उन उल्लेखनीय प्रथाओं में से एक है जो तकनीकी प्रगति और डिजिटलीकरण के बावज़ूद हरिद्वार के परिसर में बची हुई है।
पूर्वजों के ये निशान करते हैं प्रामाणिकता
बही जन्म, मृत्यु और वंशावली को सावधानीपूर्वक दर्ज करती हैं, जो अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल के रूप में कार्य करती हैं। पूर्वजों के अंगूठे के निशान और हस्ताक्षर इन अभिलेखों को प्रामाणिकता प्रदान करते हैं।
बही पंडितों के एक संप्रदाय द्वारा बनाए और संरक्षित की जाती है, जिन्हें तीर्थ पुरोहित कहा जाता है, जो अपने यजमानों को उनके पूर्वजों की याद में अनुष्ठान करने में मार्गदर्शन और मदद करते हैं, और उनके परिवार के पेड़ का मानचित्रण जारी रखते हैं।
तीर्थ पुरोहितों की युवा पीढ़ी के जीवन पर प्रकाश
बही: ट्रेसिंग माई एंसेस्टर्स तीर्थ पुरोहितों की युवा पीढ़ी के जीवन पर प्रकाश डालती है। यह उनके अस्तित्व संबंधी संकट को रेखांकित करती है, जो तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण से उत्पन्न हुई है। यह आधुनिकीकरण के बावजूद प्राचीन प्रथा को जीवित रखने के उनके प्रयास को भी दर्शाती है।
उत्तराखंड सीरीज का समापन
उत्तराखंड सीरीज का यह मनमोहक समापन एक ऐसी फिल्म है जो न केवल एक अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाती है, बल्कि तेजी से बदलती दुनिया में हमारी जड़ों को संरक्षित करने के मूल्य पर विचार करने के लिए भी प्रेरित करती है।