बागेश्वर : उत्तरायणी मेले का स्वरूप धार्मिक, राजनीतिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक है। ओमिक्रोन के कारण इस बार मेला प्रतिबंधित है। धार्मिक मेला पूरे चरम पर है। शनिवार को माघ माह के दूसरे दिन गंगा स्नान को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। इस दौरान सूर्यकुंड पर जनेऊ संस्कार भी हुए। जिससे बाजार में चहल-पहल रही।
सुबह लगभग चार बजे से श्रद्धालुजन गंगा स्नान को आने लगे। बागनाथ, बैणीमाधव, कालभैरव मंदिर में पूजा-अर्चना की। माघ की खिचड़ी का प्रसाद कालभैरव को चढ़या। काल भैरव को कोतवाल माना जाता है। माघ माह में त्रिमाघी मेला भी कहा जाता था। दूर-दराज के लोग पहले गंगा स्नान करने के लिए पैदल आते थे। रहने की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण अलाव जलकार सरयू तट पर बैठेते थे। भजन, कीर्तन, भगनौल, चांचरी आदि का आयोजन होता था। तीन दिन गंगा स्नान करने के बाद अपने गांवों को लौटते थे। वहां जाकर लोगों में प्रसाद वितरण किया जाता था। यह मेला आज भी उसी रूप में मनाया जाता है। बाद में इस मेले ने सांस्कृतिक रूप ले लिया।
1921 में कुली बेगारी के रजिस्टर बहाने के बाद राजनीतिक मेला भी हो गया। लेकिन वास्तविक मेला बागेश्वर का त्रिमाघी मेला ही है। जो कोरोना के बावजूद चल रहा है। वहीं, ओमिक्रोन के कारण व्यापारिक मेला पिछले दो वर्ष से नहीं हो पा रहा है। सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नहीं हो रहे हैं। मेले में आने वाले लोगों को अब सुविधाएं मिल गई हैं। वह वाहनों के जरिए आते हैं और स्नान आदि करने के बाद गतंव्य को चले जाते हैं।