बारिश से हिमालयी गांवों में भूस्खलन का खतरा बढ़ा

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बागेश्वर : कपकोट के उच्च हिमालयी गांवों में वर्षा का सिलसिला जारी है। जिस कारण खाती, कुंवारी, बदियाकोट, जांतोली आदि सुदूरवर्ती गांवों में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। सड़कें वर्षा होते ही बंद हो रही हैं। भारी मात्रा में मलबा और बोल्डर गिरने से अवरुद्ध हो रही सड़कों के कारण हिमालयी गांवों का जनजीवन प्रभावित हो गया है।

कुंवारी में पहाड़ से लगातार भूस्खलन हो रहा है। जिसका मलबा शंभू नदी की तरफ गिर रहा है। वहां फिर से झील बनने की आशंका बनी है। जगह-जगह मलबा आने से सड़कें दुर्घटनाओं को आमंत्रण दे रहीं हैं। कर्मी मोटर पर जगह-जगह भूस्खलन ने प्रशासन की नींद उड़ा दी है। लोडर मशीनों से सड़क साफ करते ही पुन: मलबा सड़क पर गिर रहा है। यहीं हाल नामतीचेटबगड़, शामा-तेजम और पिंडारी ग्लेशियर मोटर मार्ग पर सौंग, मुनार कस्बे के पास हो रहा है। जिस कारण यातायात लगातार प्रभावित चल रहा है। कुंवारी के पूर्व प्रधान किशन दानू ने कहा कि 2013 से लगातार भूस्खलन हो रहा है। गांव के 18 परिवारों का विस्थापन हो सका है। जबकि 58 परिवार अभी को विस्थापन का इंतजार है।

18 स्थानों पर भूस्खलन का भय

जिले के 18 भूस्खलन संभावित स्थानों का चयन जिला प्रशासन ने किया है। हल्की बारिश होने पर वहां भूस्खलन शुरू हो जाता है। जिस कारण सड़कें बंद हो रही हैं। बंद सड़कों को खोलने के लिए 36 लोडर मशीनें हैं। आपदा राहत के लिए जिले में 16 अस्थायी हेलीपैड बनाए गए हैं। जिले में सुमगढ़, कुंवारी, मल्लादेश, सेरी, बड़ेत शामिल हैं।

कुंवारी की ग्राम प्रधान धर्मा देवी ने बताया कि आपदा के लिहाज से उत्तराखंड के पहाड़ बेहद संवेदनशील हैं। केदारनाथ की तबाही का मंज़र भुलाया नहीं जा सकता तो चमोली की आपदा के निशान भी अब तक हरे हैं। जिले के कुंवारी, सुमगढ़, कर्मी आदि गांवों में भी भूस्खलन होते रहा है। बारिश होते ही गांव के लोगों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वे ग्रामीणों का शीघ्र विस्थापन करे।

बीते 10 वर्षों से कुंवारी गांव की भूमि धंस रही है। मकानों में दरारें आ चुकी हैं। गांव में कुल 76 परिवार हैं। जिनमें से 18 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। शासन के आदेश पर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।– पारितोष वर्मा, उपजिलाधिकारी, कपकोट

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