क्यों मनाते हैं ‘इंजीनियर डे’ ; जानिये देश के जाने-माने इंजीनियर एम. विश्वसरैया के सम्बन्ध में

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  • आज ‘इंजीनियर्स डे’ है अर्थात इंजीनियर एम. विश्वसरैया का जन्म दिन 
  • उनका जन्म साल 15 सितंबर 1860 को मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में हुआ था  
  • उनका पूरा नाम डॉ. मोक्षगुंडम विश्वसरैया है 
  • विश्वसरैया को आज भी देश उनके सराहनीय योगदान के लिए याद करता है

नई दिल्ली:  हम आज 21वीं सदी में हैं और देश ने इतनी तरक्की कर ली है कि चारों तरफ ऊंची-ऊंची इमारते हैं और मजबूत बांध देखने को मिलते हैं। देश भर की सड़कें एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुईं हैं और ये सब संभव हो पाया है देश के इंजीनियरों की वजह से। क्या कभी आपने सोचा है कि हम  ‘इंजीनियर डे’ क्यों मनाते हैं। देश के जाने-माने इंजीनियर एम. विश्वसरैया का जन्म साल 15 सितंबर 1860 को हुआ था। उन्हीं के जन्मदिन पर हर साल ‘इंजीनियर डे’ मनाया जाता है।

कौन थे एम. विश्वसरैया
एम. विश्वसरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में हुआ था। उनका पूरा नाम डॉ. मोक्षगुंडम विश्वसरैया है। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री व माता का नाम वेंकाचम्मा था।

उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए बंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी न होने पर उन्हें ट्यूशन पढ़ानी पड़ी। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पुणे के साइंस कॉलेज में एडमिशन मिला। पढ़ाई पूरी होने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया। वो विश्वसरैया ही हैं जिनके प्रयास से ‘कृष्णा राजा सागर’ बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वक्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण हो पाया।

एम. विश्वसरैया की उपलब्धियां

  • विश्वसरैया ने ही पानी रोकने वाले ऑटोमेटिक फ्लडगेट का डिजाइन तैयार कर पेटेंट कराया, जो साल 1903 में पहली बार पुणे के खड़कवासला जलाश्‍य में इस्‍तेमाल हुए।
  • साल 1932 में ‘कृष्‍णा राजा सागर बांध’ के निर्माण में उन्‍होंने चीफ इंजीनियर के रूप में भूमिका निभाई थी। उस समय इस बांद को बनाने का काम आसान नहीं था क्योंकि उस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था। विश्वसरैया के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती थी। ऐसे में विश्वसरैया ने हार नहीं मानी और उन्होंने इंजीनियर के साथ मिलकर ‘मोर्टार’ तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। ये बांध कर्नाटक राज्य में स्थित है और उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा बांध साबित हुआ।
  • इस बांध की लंबाई 2621 मीटर और ऊंचाई 39 मीटर है। साल 1912 में उन्हें मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया था।
  • उन्होंने हैदराबाद के लिए बाढ़ से बचाने का सिस्‍टम डिजाइन तैयार किया जिसके बाद वे काफी चर्चा में आ गए।
  • शिक्षा को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 की।
  • मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल तथा पहला ‘फ‌र्स्ट ग्रेड कॉलेज’ (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वसरैया को ही जाता है।
  • 1955 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
  • जिंदगी के 100 साल पूरे होने पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। 101 साल की उम्र में 12 अप्रैल 1962 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। विश्वसरैया को आज भी देश उनके सराहनीय योगदान के लिए याद करता है।

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