पर्यावरण मामलों की सुनवाई के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में बनी विशेष बैंच

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नैनीताल। पर्यावरण संरक्षण को लेकर संजीदा उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पर्यावरण से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष बेंच का गठन किया है। अब यह विशेष बेंच ही पर्यावरण के नुकसान समेत पर्यावरण संरक्षण, खनन समेत वन व प्राकृतिक संपदा के संरक्षण पर आधारित मामलों की सुनवाई करेगी। उत्तराखंड के चमोली में उच्च हिमालयी क्षेत्र के पर्यटन स्थल औली में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के अरबपति कारोबारी गुप्ता बंधुओं के बेटों की शादी में हुए पर्यावरणीय नुकसान से संबंधित याचिका की सुनवाई भी इसी बेंच को सौंप दी गई है।

वन की नई परिभाषा को हाईकोर्ट ने बताया था असंवैधिानिक

पर्यावरण से संबंधित मामलों को लेकर उत्तराखंड हाई कोर्ट हमेशा संवेदनशील रहा है। राज्य के वनों में दावानल के प्रकोप का स्वतः संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका दायर की और सरकार और वन विभाग को दावानल नियंत्रण व वनों की सुरक्षा को लेकर अहम-दिशा निर्देश दिए। पिछले साल ही उत्तराखंड में दस हेक्टेयर से कम के वनों को वन की परिभाषा के दायरे से बाहर करने के कार्यालयी आदेश पर रोक लगाकर कोर्ट ने वनों के अवैध कटान पर उठ रही शंकाओं व चिंताओं पर विराम लगाया। इस मामले में केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में जवाब दाखिल कर उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एडवायजरी जारी की और राज्य सरकार के आदेश को असंवैधानिक करार दिया।

सड़क का मलबा नदी में फेंकने पर भी हाई कोर्ट सख्त

कोर्ट ने रामगंगा नदी में सड़क का मलबा फेंकने के मामले में भी सख्त आदेश पारित कर निर्माण संस्था को आईना दिखाया। इसके अलावा रामनगर सीटीआर, राजाजी नेशनल पार्क समेत वन भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित तमाम मामलों पर महत्वपूर्ण आदेश पारित कर पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दिया। अब मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन ने पर्यावरण मामलों की सुनवाई के लिए विशेष बैंच का गठन किया है। इसमें वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति नारायण सिंह धानिक शामिल हैं।

2017 में भी बनी थी ग्रीन बेंच

हाई कोर्ट में 2017 में तत्कालीन कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा द्वारा भी पर्यावरण मामलों की सुनवाई के लिए ग्रीन बैंच का गठन किया गया था। जस्टिस शर्मा ने वनों में आग से लेकर ग्लेशियर समेत हिमालय की जड़ी-बूटियों इत्यादि के मामले में अहम आदेश पारित किए थे। उन्होंने एक हजार से अधिक मामलों में आदेश पारित कर रिकार्ड कायम किया था। यहां यह भी बता दें कि उत्तराखंड के 71 फीसद से अधिक भू-भाग पर वन हैं। वनों के अवैज्ञानिक व अवैधानिक दोहन की समस्या लगातार बढ़ रही है। मुख्य न्यायाधीश के इस फैसले को इसी नजरिये से देखा जा रहा है।

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