फ्रांस, जर्मनी की तरह अब उत्तराखंड में भी गमलों में करें सेब की खेती

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रानीखेत : सेब के पौधे अब घर के गमलों में भी उगेंगे। इसके लिए बड़ा भूंखड होना जरूरी नहीं है। जी हां मल्चिंग विधि से गमलों में सेब उगाने की तकनीक विकसित की गई है। भीमताल (नैनीताल) में इसके सफल प्रयोग व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की दिलचस्पी के बाद अब उत्तराखंड के अन्य पर्वतीय जनपदों में इस तकनीक को विस्तार देने की योजना है।

टी टूरिज्म के बाद उत्तराखंड को एप्पल स्टेट की पहचान दिलाने की दिशा में नई क्रांति का सूत्रपात कर लिया गया है। फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन आदि देशों की भांति उत्तराखंड में गमले में सेब की पैदावार लेने यानि पॉट प्रोडक्शन तकनीक विकसित कर ली गई है। भीमताल में इंडो डच कंपनी के सहयोग से सुधीर चड्ढा ने अपने बागान में अभिनव प्रयोग कर दूसरों के लिए प्रेरणा बने हैं।

सुधीर ने पिछले साल तीन हजार गमलों में पौध लगाए और अबकी सीजन में अच्छी खासी पैदावार ले रहे हैं। इस तकनीक को अब अल्मोड़ा, चंपावत समेत गढ़वाल के अन्य जनपदों में भी आजमाने की तैयारी है। ताकि लोगों को सेब उत्पादन की ओर प्रेरित किया जा सके। सेब के रूट स्टाक तैयार कर उन्नत प्रजाति के पौधे तैयार करने वाले बागवान प्रेमी सुधीर चड्ढा कहते हैं कि पहाड़ में जिनके पास कम कृषि भूमि है, वह इस तकनीक को अपनाकर ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं।

ऐसे होती है गमले में खेती

  • आठ से दस इंच व्यास व एक फुट गहरे गमले उपयुक्त रहते हैं।
  • तीन, एक व एक के अनुपात में मिट्टी, पूरी तरह तैयार गोबर खाद व नारियल की भूसी के भीतर मौजूद गूदे से तैयार कोकोपिट मिट्टी को मिला देते हैं।
  • एम-27 रूटस्टाक पर उन्नत नस्ल की कलम लगा दी जाती है।
  • पौधे लगाते समय एक इंच की मोटाई वाली बांस की छह फुट लंबी लाठी भी गाड़कर पौधे को कुछ स्थानों पर बांध दिया जाता है। इससे पौधे सीधा खड़े रहते हैं।
  • छह फुट की ऊंचाई तक बढ़ने पर शीर्ष और लंबी टहनियों के सिरे काट दिए जाते हैं।
  • इस विधि से लगाए जाने वाले पौधे पहले वर्ष ही फल देने लगते हैं।
  • खास बात कि एक एकड़ में चार हजार पौधे गमलों में लगाए जा सकते हैं।

ये प्रजातियां कर रहे तैयार
पौधालय में गाला मेंमां, डार्क वेरोन गाला, गाला सीनीगोशाला, रेड वैरायटी और रेड डिलीशियस ग्रुप में किंगरोट , रेड विलोक्स व जेरोमाइन मेस्टर आदि विदेशी प्रजातियाें के पौधे।

अन्य फलों पर भी होगा प्रयोग
सुधीर चड्ढा के अनुसार वह जल्द ही सेब के 10 हजार गमले और तैयार करने जा रहे। जल्द ही नाशपाती, प्लम, खुमानी आदि फलों के पौधे भी गमलों में लगाए जाएंगे। प्लांटिस एग्रोटेक कैंची में शुरूआत कर ली गई है।

अब कुछ गरम क्षेत्रों में भी सेब उत्पादन
अब सेब के लिए जरूरी नहीं की पारा सामान्य से नीचे हो। अपेक्षाकृत गर्मी वाले क्षेत्रों में भी मीठे व रसीले सेब सेहत के साथ आप का मूड भी बना सकते हैं। यह संभव हुआ है राजकीय उद्यान चौबटिया के विशेषज्ञों के निरंतर प्रयासों से। उन्होंने सेब की एक ऐसी प्रजाति तैयार कर ली है, जो गरम क्षेत्रों में भी बेहतर उत्पादन देगी।

गरमी झेलने की पर्याप्त क्षमता भी रहेगी। उद्यान निरीक्षक नारायण सिंह राणा कहते हैं कि चार हजार से छह हजार फीट तक यानि लगभग 1219 व 1828 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रेड विलाेक्स प्रजाति का सेब भी उगाया जा सकेगा। जहां का तापमान 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

अब तक 22 से 24 डिग्री वाले 2400 मीटर की ऊंचाई तक के उच्च पर्वतीय क्षेत्र ही सेब की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त माने जाते रहे हैं। रेड विलोक्स के करीब 2200 पौधे तैयार कर लिए गए हैं। रूट स्टाक चौबटिया में ही तैयार किए गए जबकि कलम हिमाचल के हैं।

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