चुनावी चौसर बिछ गई है। मगर सत्तापक्ष की साख से जुड़ी जिले की सबसे हॉट रानीखेत सीट पर भाजपा के सियासी रणनीतिकार तुरत फुरत मोहरा चलने से ठिठक रहे हैं। वजह, भाजपा 2017 के विधानसभा चुनाव जैसा हस्र नहीं चाहती। बगावत से बचते बचाते चौसर पर सही चाल चलने को टॉप थ्री दावेदारों को कसौटी पर लगभग कसा जा चुका है। पार्टी सूत्रों की मानें तो आसपड़ोस की दो सीटों पर उलझी गुत्थी सुलझाने के बाद रानीखेत की तस्वीर साफ होगी। यानी अल्मोड़ा व द्वाराहाट में ठाकुर प्रत्याशियों को उतारा गया तो भाजपा रानीखेत की क्षत्रिय बहूल सीट पर नए प्रयोग से परहेज कर ब्राह्मïण उम्मीदवार पर दांव लगा सकती है।
केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट के राजनीतिक और पूर्व सीएम हरीश रावत के गृहक्षेत्र का सियासी माहौल इस दफा एकदम जुदा है। खासतौर पर भाजपा में टिकट को लेकर ऐसा असमंजस पहली बार दिख रहा। दरअसल, उत्तराखंड गठन के बाद से ही इस सीट पर अजय भट्ट ही भाजपा का इकलौता चेहरा रहे हैं। मगर 2017 की हार फिर नैनीताल संसदीय क्षेत्र से जीतकर दिल्ली पहुंचने के बाद से रानीखेत सीट पर दूसरी पांत के स्थानीय सक्रिय नेताओं के खम ठोकने से चुनावी चौसर बिछने के बावजूद मोहरे तय करना भाजपा के सियासी पंडितों के लिए मुश्किल साबित हो रहा। पार्टी सूत्र कहते हैं शीर्ष रणनीतिकार पहले अल्मोड़ा व द्वाराहाट सीट पर नजरें टिकाए हैं। इन दोनों सीटों पर ठाकुर प्रत्याशी टिकट पा जाते हैं तो रानीखेत में नया प्रयोग करने के बजाय भाजपा ब्राह्मण उम्मीदवार को उतारने का मन बना रही है। यानी अल्मोड़ा व द्वाराहाट सीट का जातिगत समीकरण रानीखेत का टिकट तय करेगा।