नैनीताल : देश के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में शुमार नैनीताल में इस सीजन जल्द हिमपात हो सकता है। ला नीना का प्रभाव और कड़ाके की ठंड नैनीताल में जल्द बर्फबारी के संकेत दे रही है। आद्रता हिमपात के अनुकूल नजर आ रही है, जबकि पारा भी सामान्य से नीचे पहुंच रहा है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ पर्यावरण विज्ञानी डा.नरेंद्र सिंह के अनुसार अक्टूबर में हुई बारिश के कारण वातावरण में नमी की मात्रा अधिक है। यह दशा आने वाले दिनों में ठंड को बढ़ाएगी। इसके साथ ही तापमान में निरंतर गिरावट बनी है। यह स्थिति बारिश व हिमपात के लिए अनुकूल परिस्थिति बनाती है। अब ऐसे में पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होकर इस क्षेत्र में पहुंचता है तो ज्लइ हिमपात हो सकता है।
ला नीना के प्रभाव से उत्तराखंड में इस बार कड़ाके की ठंड पडऩे की संभावना है। नवंबर के साथ ठंड की शुरुआत हो चुकी है। कुमाऊं के कई स्थानों पर तापमान सामान्य से नीचे पहुंच गया है। नैनीताल में भी पिछले कई दिनों से ठंड बरकरार है। शुक्रवार को दिन में बादल छाए रहे, तो शनिवार सुबह भी धुंध रही। जिस कारण ठंड का एहसास अधिक रहा। शाम को बादल छंटने के बाद पाला गिरना शुरू हो गया। जीआइसी मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार अधिकतम तापमान 16 डिग्री व न्यूनतम आठ डिग्री सेल्सियस रहा। आद्रता अधिकतम 82 व न्यूनतम 52 प्रतिशत दर्ज की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह परिस्थितियां बर्फबारी के लिए अनुकूल होंगी और नैनीताल व मुक्तेश्वर सरीखी उंचाई वाले क्षेत्रों में जमकर बर्फबारी की संभावना जताई जा रही है। मगर यह सब पश्चिमी विक्षोभ पर निर्भर है। पश्चिमी विक्षोभ जितने सक्रिय होंगे, बर्फबारी की परिस्थितियां उतनी ही अनुकूल बनेंगी।
बीते साल नहीं हुई थी अच्छी बर्फबारी
बीते साल नैनीताल में बेहद कम हिमपात होने से पर्यटकों और स्थानीय लोगों को निराश होना पड़ा था। जबकि मानसून अच्छा होने के कारण लोगों को अच्छी बर्फबारी की उम्मीद थी। वहीं ला नीना का असर सरोवर नगरी में बर्फबारी नहीं करा सकी थी। मौसम के जानकारों का कहना था कि हिमपात नहीं होने का मुख्य कारण कमजोर पश्चिमी विक्षोभ रहा है। जबकि 2019 में हिमपात व ओलों की चादर से दर्जन से अधिक बार नैनीताल सफेद रंग में तब्दील हो गया था। 2020 में भी ला नीना के असर से अनुमान लगाया जा रहा था कि हिमपात का दौर जारी रहेगा। कई बार तापमान इसके अनुकूल बना भी, घने बादलों ने भी कई बार आस जगाई, मगर हिमपात नहीं हो सका।
ला नीना समुद्री घटना, हवा की दिशा में बदलाव से होती
ला नीना एक स्पैनिश भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है छोटी बच्ची। ला-नीना मानसून का रुख तय करने वाली समुद्री घटना है, जो कि सात से आठ साल में अल-नीनो के बाद होती है। अल-नीनो में जहां समुद्र की सतह का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है, वहीं ला-नीना में समुद्र की सतह का तापमान कम होने लगता है। इसके पीछे बड़ी वजह हवा की दिशा में बदलाव होना है। इसमें समुद्री क्षेत्रों में हवा की रफ्तार 55 से 60 किमी रहती है। मैदानी क्षेत्रों में यह 20 से 25 किमी की गति से चलती है। ला-नीना भूमध्य रेखा के आसपास प्रशांत महासागर के करीब सक्रिय होता है। इसका असर अन्य महाद्वीपों में नजर आता है। प्रशांत महासागर का सबसे गर्म हिस्सा भूमध्य सागर के नजदीक रहता है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण वहां हवा पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं, जबकि ला-नीना में यह परिर्वितत होती रहती हैं।
ठंड बढऩे के ये भी प्रमुख कारण
ठंड के लिए जरूरी फैक्टर पश्चिमी विक्षोभ जल्दी आने लगे।
हवा का रुख दक्षिण-पूर्वी से बदलकर उत्तरी, उत्तर-पूर्वी हो गया।
नमी का स्तर धीरे-धीरे कम होकर 45 प्रतिशत तक पहुंच जाना।
पिथौरागढ़, बागेश्वर के ऊंचे इलाकों में हिमपात होना।
उमड़ेगी पर्यटकों की भीड़
कोरोना वायरस के कारण पर्यटन के लिहाज से बीता दो साल काफी फीका रहा। वहीं जब कोविड का प्रभाव कम हो रहा था और पर्यटकों ने उत्तराखंड के पर्यटन स्थलों का रुख किया तो बीते माह भारी बारिश के कारण आई आपदा ने फिर पर्यटन कारोबार को चौपट कर दिया। वहीं अब जब दीपावली के बाद दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ा तो एक बार फिर सैलानियों ने नैनीताल का रुख किया। अब अगर हिमपात होता है तो पर्यटन कारोबार एक बार फिर रफ्तार पकड़ेगा।