हल्द्वानी। पत्रकारिता व साहित्य क्षेत्र के सशक्त हस्ताक्षर रहे दिवाकर भट्ट नहीं रहे। सोमवार की शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली। कोरोना से ग्रस्त होने के बाद उनका निजी अस्पताल में उपचार चल रहा था। वह दो सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहे। उनके निधन की सूचना से साहित्य व पत्रकारिता जगत में शोक छा गया है।
पीलीकोठी स्थित अाफिसर्स कॉलोनी में रहने वाले 59 वर्षीय दिवाकर भट्ट कई समाचार पत्रों में लंबे समय से काम करते रहे। सक्रिय पत्रकारिता साथ ही वह साहित्य के क्षेत्र में जुड़े हुए थे । साहित्य, कला, संस्कृति पर आधारित आधारशिला पत्रिका का 36 वर्षों से संपादन कर रहे थे। इस पत्रिका के जरिये वह देश-दुनिया में हिंदी के प्रचार की अलख जगाए हुए थे। वह 18 अप्रैल को कोरोना से ग्रस्त हो गए थे।
इसके बाद उन्हें नीलकंठ अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। धीरे-धीरे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। उन्हें आइसीयू में भर्ती किया गया। सोमवार को दिवाकर भट्ट कोरोना से जंग हार गए। उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा व एक बेटी है। उनके निधन की सूचना फैलते ही देश-दुनिया में उनके शुभचिंतकों में शोक की लहर दौड़ गई। आज उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
भट्ट के निधन से हर कोई स्तब्ध
वरिष्ठ साहित्यकार व अनुवादक अशोक पांडे, मॉरीशस के वरिष्ठ लेखक रामदेव धुरंधर, पत्रकार सविता तिवारी, धामपुर निवासी वरिष्ठ साहित्यकार शंकर क्षेम समेत तमाम साहित्यकारों ने गहरा दुख जताया है। भट्ट की असामयिक निधन से साहित्य जगत को गहरा दुख पहुंचा है। वह साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य रहे थे।
हिंदी को यूएन की भाषा बनाए जाने को लेकर थे प्रतिबद्ध
वरिष्ठ साहित्यकार दिवाकर भट्ट हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाए जाने को लेकर 20 वर्षों से जुटे थे। आधारशिला विश्व हिंदी मिशन व अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद के संयोजक भी थे। मॉरीशस, बैंकाक, सिंगापुर, वियतनाम, हंगरी, उज्बेकिस्तान, हंगरी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, हालैंड, जर्मनी, इंग्लैंड में दिवाकर हिंदी सम्मेलन का आयोजन कर चुके हैं। उन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों की पुस्तकें प्रकाशित की हैं।