15 साल खाड़ी देशों में किया काम, कोविड काल में नौकरी गंवाई, अब अपने देश में मशरूम की खेती से बनाया नाम

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15 साल तक ओमान, कुवैत और दुबई जैसे देश में क्षेत्रीय लाइफ स्टाइल ब्रांड के ऑपरेशंस मैनेजर सतिंदर सिंह रावत ने कोविड काल में नौकरी तो गंवाई, मगर अपनी हिम्मत को डिगने नहीं दिया। दुबई से नोएडा लौटकर आए इस रावत दंपती ने न केवल रामनगर के भवानीपुर पंजाबी गांव में मशरूम की खेती का कारोबार शुरू किया, बल्कि अपने इस कारोबार से जोड़ते हुए 10 युवाओं को भी नौकरी दी। सतिंदर सिंह रावत ने बताया कि 8 साल से वह परिवार के साथ दुबई में थे। कोविड संक्रमण काल शुरू हुआ तो उनकी नौकरी पर भी इसका असर पड़ा। नौकरी छूटी तो जून-2020 में वह परिवार के साथ नोएडा आ गए। वह नोएडा सेक्टर-107 स्थित ग्रेट वेल्यू शरणम सोसाइटी में रहते हैं। सतिंदर बताते हैं कि नौकरी छूटने और दुबई से लौटने के बाद से ही वह परिवार के भविष्य को लेकर काफी चिंतित थे। ऐसे समय में पत्नी सपना और ससुर डॉ. जेपी शर्मा ने हौसला बंधाया। हिमाचल प्रदेश में डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर पद से सेवानिवृत्त ससुर ने ही उन्हें बटन मशरूम की खेती करने का सुझाव दिया। सतिंदर पौड़ी गढ़वाल में बीरोंखाल ब्लॉक के पट्टी खाटली के रहने वाले हैं। जब वह अपने गांव गए तो वहां की बंजर जमीन देखकर ही उनके मन में खेती करने का विचार आया, लेकिन गांव में गेहूं और धान की खेती करना आसान काम नहीं है, क्योंकि जंगली जानवर फसलों को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्होंने बताया कि रामनगर के भवानीपुर पंजाबी गांव में भी उनकी जमीन है। ऐसे में साढ़े सात बीघा जमीन पर उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की।

इसके लिए दिल्ली के एक युवा को हायर किया। वह इस खेती की अच्छी जानकारी रखता है। अब तक वह 10 युवाओं को नौकरी दे चुके हैं।  उन्होंने स्थानीय लोगों को भी जोड़ा। उनके व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत पर काम करना, उत्तराखंड की पहाड़ियों में रिवर्स माइग्रेशन और कृषि में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है। इसलिए अब व्यवसाय के मूल दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए रावत दंपती ने इस कारोबार को बढ़ाने के लिए 70 हजार किलो मशरूम उगाने का लक्ष्य रखा है।रावत ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से अभी मांग थोड़ी कम है, लेकिन जैसे ही सब कुछ सामान्य होगा मशरूम की मांग बढ़ जाएगी। उनके अनुसार मशरूम की खेती एक सप्ताह में तैयार हो रही है। सतिंदर सिंह रावत के साथ उनकी पत्नी सपना भी इस काम में हाथ बंटाती है। सतिंदर सिंह रावत बताते हैं कि उन्होंने नवंबर में मशरूम की खेती शुरू की और मार्च में मशरूम का उत्पादन शुरू हो गया है। मशरूम की खेती के लिए कम तापमान के साथ कंपोस्ट खाद की भी जरूरत होती है। मशरूम तीन प्रकार के होते हैं, जिनमें बटन मशरूम, ढिंगरी मशरूम (ऑयस्टर मशरूम) और दूधिया मशरूम (मिल्की) शामिल हैं। सतिंदर सिंह रावत ने बताया कि छह महीने बटन मशरूम उगाने की तकनीक सीखी है। मशरूम की खेती की मूल बातें सीखने और समझने के लिए पहले एक झोपड़ी में मशरूम का उत्पादन शुरू किया। सतिंदर बताते हैं कि पौड़ी के भटवाड़ों में दो एसी झोपड़ियां बना रहे हैं। सालभर में मशरूम की पांच फसल हासिल करने के लिए प्रत्येक झोपड़ी को पूरी तरह से एसी बनाया गया है। इसका तापमान 17 से 18 डिग्री रहता है। इस गांव में वह साल में ज्यादातर समय प्राकृतिक रूप से मशरूम उगा सकेंगे। साथ ही हम स्थानीय ग्रामीणों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करने में सक्षम होंगे।  बीरोंखाल में मशरूम उत्पादन के लिए खाद रामनगर से ही भेजेंगे। सतिंदर सिंह रावत बताते हैं कि मशरूम के लिए तीस दिन के अंदर खाद तैयार की जाती है, जिसमें गेहूं का भूसा, मुर्गियों के बाड़े की खाद, गेहूं का चोकर, जिप्सन और गुड़ के शीरे को मिलाकर रख दिया जाता है। इसे हर तीन दिन में पलटा जाता है। तीस दिन के अंदर यह खाद बनकर तैयार हो जाती है। 14 दिन के बाद दूसरी खाद तैयार की जाती है, जिसमें नारियल का बूरा, धान के भूसे की राख और जिप्सन को मिलाया जाता है, यह खाद दो दिन में तैयार होती है। इसके बाद मशरूम की खेती कर सकते है।

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