लालकुआं। लोकसभा व विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करने वाला बिंदुखत्ता क्षेत्र पिछले 40 वर्षो से राजस्व गांव बनने का इंतजार कर रहा है। हर चुनाव में यहां के लोगों को राजस्व गांव का झांसा देकर वोट बटोरे जाते हैं लेकिन चुनाव के बाद तकनीकी पेंच का बहाना बनाकर वायदे से मुकर जाना हर बार का किस्सा बन गया है। जिस कारण यहां की लगभग 80 हजार की आबादी अपने ही देश में दोयम दर्जे का जीवन यापन करने को मजबूर है।
लोगों की कई पीढियां गुजर गई, मकान कच्चे से पक्के हो गए, लालटेन की जगह बिजली के बल्ब रोशन होने लगे। वक्त के साथ सब कुछ बदलता चला गया, पर जो कुछ नहीं बदला वह है बिंदुखत्ता के लोगों की संघर्ष की गाथा। यह व्यथा है नैनीताल जनपद के सबसे बड़े गांव बिंदुखत्ता की है। दरअसल लगभग 40 वर्ष पूर्व कुमाऊं व गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों के लोग बड़ी तादात में बिंदुखत्ता में आकर बसे। यहां धीरे-धीरे सड़क, स्कूल, अस्पताल समेत अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हो पाई। लेकिन राजस्व गांव का मुद्दा लटका रहा। इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने इमानदारी से काम नही किया।
विगत कई चुनावों में राजस्व गांव का मुद्दा भुनाकर कई जनप्रतिनिधि केंद्र संसद व विधान सभा में पहुंचे, परंतु बिंदुखत्ता को राजस्व गांव घोषित करने की वर्षो पुरानी मांग आज तक पूरी नहीं हो सकी। जनप्रतिनिधियों के लिए सबसे अच्छी बात यह कि उन्हें यहां के वोटरों को लुभाने के लिए किसी बड़े मुद्दे की जरूरत नहीं होती। वोट बटोरने के लिए सिर्फ राजस्व गांव का मुद्दा ही काफी है। यहां के वाशिंदे राजस्व गांव के नाम पर दशकों से छले जा रहे हैं।