देहरादून। संवाददाता। आज ग्लोबल टाइगर डे मनाया जा रहा है। आज ही दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में हुए टाइगर एस्टिमेशन के आंकड़े भी जारी कर दिए हैं जिसमें उत्तराखण्ड 442 टाइगर्स के साथ देश में तीसरे स्थान पर है। इससे तय है कि कॉर्बेट में भी टाइगर्स की संख्या में इजाफा हुआ है। हालांकि अभी टाइगर रिजर्व के आंकड़े आने शेष हैं लेकिन माना यही जा रहा है कि यहां टाइगर की संख्या 215 से निश्चित रूप से बढ़ गई है। बाघों की संख्या में वृद्धि स्वागतयोग्य तो है लेकिन राज्य में इससे कई चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं।
बढ़ेगा संघर्ष
ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन के अनुसार 2006 से 2018 तक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में टाइगर्स की संख्या में इजाफा हुआ हैं। टाइगर्स की संख्या बढ़ना अच्छा तो है लेकिन इससे उत्तराखंड वन विभाग और कॉर्बेट प्रबंधन के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं क्योंकि इससे बाघों के इंसान और आपस में संघर्ष भी बढ़े हैं।
दरअसल बाघ अकेले रहने वाला प्राणी है। जब एक ही क्षेत्र में इनकी संख्या ज्यादा हो जाती है तो युवा बाघ अपने लिए नए क्षेत्र की तलाश में जंगल से बाहर आते हैं और फिर उनका इंसान से टकराव होता है। अगर वह पार्क की सीमा में ही रहते हैं तो उनमें आपस में संघर्ष होता है।
बेहद सघन आबादी
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को बाघों की सघन आबादी के लिए जाना जाता है। यहां प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में करीब 20 टाइगर मौजूद हैं। यह किसी भी टाइगर एक्सपर्ट के लिए हैरानी की बात है। कॉर्बेट प्रशासन यहां मौजूद प्राकृतिक संसाधनों को इसकी बड़ी वजह मानता है।
देश में एक अप्रैल, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई थी तो कॉर्बेट को पहला टाइगर रिजर्व होने का भी गौरव मिला था। प्रोजेक्ट टाइगर यहां काफी सफल भी रहा है। इस बार बाघों की संख्या बढ़ने को कॉर्बेट प्रबंधन गर्व की बात तो मान रहा है लेकिन सीमित वन क्षेत्र के चलते जंगल के चलते प्रशासन के सामने चुनौतियां भी बढ़ गई हैं।