ऐसे कैसे होगी छात्रों की ऑनलाइन पढ़ाई, क्लास के लिए कई किमी की दौड़ लगाने को मजबूर

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चीन सीमा से सटे देश के अंतिम गांव नामिक के विद्यार्थियों का दर्द कोरोना से अधिक लुंजपुंज सिस्टम ने बढ़ाया है। कोरोना के कारण घर आए गांव के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए 5 किमी पैदल चलकर पहाड़यिों में नेटवर्क खोजना पड़ता है। जहां भी इन्हें नेटवर्क मिलता है, वहां बैठकर ये बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करने के लिए मजबूर होते हैं। कोरोना के कहर में संचारविहीन नामिक गांव के 32 से अधिक बच्चों को व्यवस्था की मार ने रोजाना 5 किमी पैदल चलकर किसी तरह ऑनलाइन पढ़ाई करने के लिए मजबूर किया है। नामिक गांव के अधिकतर बच्चे मुनस्यारी या पिथौरागढ़ में किराए के कमरों में रहकर पढ़ाई करते हैं। कोरोना कफ्र्यू के चलते ये बच्चे अपने गांव लौट गए हैं।

उनके गांव में दूर-दूर तक संचार सुविधा नहीं है। 5जी नेटवर्क की चर्चाओं के बीच इन बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए रोजाना तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है। वे रोज अपने घर से पैदल निकलते हैं। इसके बाद पहाड़ी में नेटवर्क जहां पर काम करने लगे, वहीं ऑनलाइन क्लास लगाने के लिए मजबूर होते हैं। क्षेत्र में बारिश में भी खड़ी चढ़ाई पार कर 5 किमी बाद मोबाइल में नेटवर्क आते ही वे खुशी से झूम उठते हैं। भारी खतरे के बीच पहाड़ की तीव्र ढाल पर बैठकर  ऑनलाइन क्लास लगाना उनकी विवशता हो गया है। एक तरफ कोरोना वहीं दूसरी तरफ आपदा और बारिश के बीच संचार सुविधा से वंचित ये बच्चे किसी तरह ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं।

फोन पर बात के लिए बुजुर्ग भी नापते हैं चढ़ाई: मुनस्यारी। अपनों से फोन पर हाय-हेलो कहने के लिए नामिक गांव के बुजुर्ग भी 5 किमी की चढ़ाई पैदल नापते हैं। वे भी घर आए बच्चों के साथ चलकर रोज अपने बाहरी शहरों में रह रहे बच्चों की खैरियत जानने के लिए नेटवर्क की तलाश में आते हैं।

इन गांवों से इतनी दौड़
गांव          किमी

समकोट        4
कोटा            5
मलोंन           6
बोना             5
गोल्फा         4

12 से अधिक गांवों के 200 से अधिक बच्चे यही झेल रहे
मुनस्यारी विकासखंड के 12 से अधिक गांवों के 200 से ज्यादा बच्चों की यही दुश्वारी है। वे किसी तरह 2 से 7 किमी तक पैदल दूरी तय कर पहले मोबाइल में सिग्नल की तलाश करते हैं, फिर ऑनलाइन पढ़ाई कर पाते हैं।

संचार सुविधा मुकम्मल करने की मांग के लिए मैंने दिल्ली जंतर मंतर में भी धरना दिया था। सीमांत की आवाज यह सरकार नहीं सुन रही है। बच्चे-बुजुर्ग सभी परेशान हैं। गांव के लोग अपनों से बात नहीं कर पा रहे हैं। इसके बावजूद सरकार सुनती नहीं है। मैं हर हाल यहां के लोगों को संचार सेवा की मुख्यधारा से जोड़ने एवं आम जन सुविधाएं देने के लिए संघर्षरत हूं।
हरीश धामी, विधायक, धारचूला।

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