पिथौरागढ़। कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग के गांवों में अब सेब के बागान दिखेंगे। उच्च हिमालयी दारमा घाटी में पहली बार व्यावसायिक तौर पर किसानों ने सेब की खेती शुरू की है। रॉयल डिलीशियस, गाला एप्पल जैसी प्रजाति के पौधे ग्रामीण लगा रहे हैं। इससे पहले व्यास घाटी के नाभी, कुटी और बूंदी गांवों के बागवान ही सेब का उत्पादन कर रहे थे। सीमा की रक्षा में जुटी आईटीबीपी ग्रामीणों से सीधे सेब खरीद रही है। इससे भी किसान उत्साहित हैं। भारत चीन सीमा से सटे 1500 से 3200 मीटर की ऊंचाई वाली दारमा घाटी के गांव साल में 5 माह से अधिक समय तक बर्फ से ढके रहते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यहां सेब के उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन बीते दशकों में पर्यटन कारोबार के चलते यहां ग्रामीणों ने इसे तव्वजो नहीं दी। अब कोरोना से बदले हालातों में लोगों का रुझान सेब की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है। यही वजह है कि इन दिनों घाटी के दस से अधिक गांवों में हर तरफ सेब की पौध उगती दिखाई दे रही है।
दस गांवों में 20 हेक्टेयर से ज्यादा बाग
दारमा घाटी के फिलम, बौन, मार्छा, सीपू, नागलिंग, बालिंग, बुगलिंग, दर, चल और सेला में तेजी से सेब के बाग लग रहे हैं। वर्तमान में 20 हेक्टेयर से अधिक खेतों में रॉयल डिलीशियस और गाला एप्पल के पौध लगाए है। होम स्टे एसोसएशिन के अध्यक्ष जयेन्द्र फिरमाल कहते हैं सरकार को चाहिए हिमाचल से यहां एप्पल विशेषज्ञ बुलाकर किसानों को प्रशिक्षित कराने की व्यवस्था करे तो परिणाम और बेहतर आएंगे।
आईटीबीपी ने दिया ग्रामीणों को बाजार
उच्च हिमालयी व्यास घाटी में नाभी, कुटी, बूंदी में करीब 40 से अधिक किसान सेब का उत्पादन कर इसे वहीं भारत-चीन सीमा पर तैनात आईटीबीपी को बेच रहे हैं। सेब उत्पादक जीत सिंह ने बताया कि इससे उन्हें हर साल औसत 4 से 5 लाख तक आय हो रही है। उनके अन्य साथी किसान भी सेब की खेती से अच्छी आय ले रहे हैं।
दारमा व व्यास वैली में अब तक 14 हजार से ज्यादा सेब के पौध लगाए जा चुके हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में सेब उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। हम लगातार सेब की पौध रोपने को बीएडीपी के तहत दे रहे रहे हैं। दारमा में उच्च गुणवत्ता के सेब को पैदा कर किसान अपनी तकदीर बदलेंगे।
राम स्वरुप वर्मा, डीएचओ, पिथौरागढ़