नेशनल ग्रिड की लाइन बिछा कर बिजली पहुँचाना कठिन है. इसलिए इन गांवों को छोटी माइक्रोहाइडिल योजना बना कर बिजली उपलब्ध करने की योजन तैयार की गई है. सेला के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे सात और गांवों का अंधेरा अगले वर्ष तक दूर हो जाएगा. धारचूला तहसील के नागलिंग गांव में 50 किलोवाट, दुग्तू में 25 किलोवाट, बूंदी में 50 किलोवाट, नपल्चयू में 50 किलोवाट, बूंदी में 50 किलोवाट और रौंगकौंग में 50 किलोवाट की योजनाएं बनाई जा रही हैं.
पिथौरागढ़ (संवाददाता): जनपद के भारत-तिब्बत सीमा के गांवों को अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (उरेडा) रोशन करेगा. इन गांवों को प्राकृतिक कारणों से नेशनल ग्रिड की लाइन बिछा कर बिजली पहुँचाना कठिन है. इस लिए इन गांवों को छोटी माइक्रोहाइडिल योजना बना कर बिजली उपलब्ध करने की योजन तैयार की गई है. सेला के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे सात और गांवों का अंधेरा अगले वर्ष तक दूर हो जाएगा. धारचूला तहसील के नागलिंग गांव में 50 किलोवाट, दुग्तू में 25 किलोवाट, बूंदी में 50 किलोवाट, नपल्चयू में 50 किलोवाट, बूंदी में 50 किलोवाट और रौंगकौंग में 50 किलोवाट की योजनाएं बनाई जा रही हैं.
सेला गाँव का अंधियारा इस माह दूर हो जाएगा. 35 परिवारों को बिजली की सुविधा मिल जाएगी. बिजली तैयार करने के लिए गांव के लोगों ने खुद माइक्रोहाइडिल योजना तैयार की है. अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसा सेला गांव समुद्रतल से साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर है. पानी से बिजली पैदा करने का खाका अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (उरेडा) ने खींचा. गांव की जरूरत को देखते हुए 50 किलोवाट क्षमता की योजना डिजाइन की गई और इसका प्रारूप ग्रामीणों को सौंप दिया गया.
गांव में ऊर्जा समिति का गठन हुआ और सरकार ने धनराशि उपलब्ध कराकर निर्माण का जिम्मा ग्रामीणों को ही सौंप दिया. एक वर्ष के भीतर योजना बनकर तैयार हो गई है. तकनीकी मदद कर रहे उरेडा ने इसका ट्रायल पूरा कर लिया है. सितंबर माह के अंत तक योजना शुरू हो जाएगी.