अलग-थलग अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाली आदिम जनजाति वनराजि समाज में महिलाएं मिथक तोड़ रही हैं। जंगलों से निकल पाठशालाओं से होते हुए कालेजों से उच्च शिक्षा लेकर समाज की दिशा और दशा बदल रही हैं। जंगलों और प्रकृति से जो मिला उससे आज का गुजारा कर भविष्य की कोई सोच नहीं रखने वाले समाज की महिलाएं आज बैंकों, डाकघरों में खाता खोल चुकी हैं। कुछ महिलाओं ने तो परिवार के नए सदस्य का बीमा तक भी कराना प्रारंभ कर दिया है। गाय, बकरी और मुर्गी पालन कर पुख्ता रोजी रोटी की दिशा में बढ़ रही हैं।
पिथौरागढ़ : जंगलों के बीच गिरि, कंदराओं में निवास, शेष समाज से कट कर अलग-थलग अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाली आदिम जनजाति वनराजि समाज में महिलाएं मिथक तोड़ रही हैं। जंगलों से निकल पाठशालाओं से होते हुए कालेजों से उच्च शिक्षा लेकर समाज की दिशा और दशा बदल रही हैं। जंगलों और प्रकृति से जो मिला उससे आज का गुजारा कर भविष्य की कोई सोच नहीं रखने वाले समाज की महिलाएं आज बैंकों, डाकघरों में खाता खोल चुकी हैं। कुछ महिलाओं ने तो परिवार के नए सदस्य का बीमा तक भी कराना प्रारंभ कर दिया है। गाय, बकरी और मुर्गी पालन कर पुख्ता रोजी रोटी की दिशा में बढ़ रही हैं। शिक्षा से तौबा रखने वाले समाज की पचास फीसद महिलाएं अपने प्रयास से साक्षर हो चुकी हैं।
यह समाज सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की धारचूला और डीडीहाट तहसीलों के नौ स्थानों पर निवास करता है। प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति समाज है। नौ गांवों में रहने वाले इस आदिम जनजाति की कुल जनसंख्या 685 है। जिसमें महिलाओं की संख्या 215 है। अन्य लोगों से दूरी रखने वाले इस आदिम समाज के लोग पूरी तरह जंगलों पर आश्रित थे। वन अधिनियम 1980 के बाद वनों पर आश्रय समाप्त हो गया । इसके बाद समाज के पुरुष जंगलों में लकड़ी चीरने का कार्य करते थे। वन अधिनियम के चलते यह कार्य सिमटता गया। समाज पूरी तरह पुरु ष प्रधान है। शिक्षा का स्तर शून्य था। इस समाज में महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय रही है। जिसके चलते यहां पर जन्म मृत्युदर काफी अधिक रही। आजादी के बाद भी इनकी संख्या मात्र 685 ही रह चुकी है।
मंजू रजवार बनी पहली ग्रेजुएट
शिक्षा से वंचित इस समाज से सबसे पहले समाज की बालिका मंजू रजवार ग्रेजुएट बनी। वह इस समय आंगनबाड़ी केंद्र संभाल रही है। इसके बाद इसी समाज की जानकी और उसकी बहन हिमानी ने एमए पास किया। वर्तमान में 15 से अधिक वनराजि बालिकाएं जूनियर हाईस्कूल से लेकर स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। जबकि पुरुष वर्ग में एक युवक बलवंत रजवार इंटर तक पहुंचा और बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी । समाज की बालिकाएं जंगली रास्तों से कई किमी पैदल चलकर विद्यालयों में पढ़ने जाती हैं।
रजनी, हंसा, कविता वनराजि समाज की महिला नारी सशक्तीकरण का उदाहरण बनती जा रही हैं। समाज की जिन महिलाओं ने कभी स्कूल के दर्शन नहीं किए। जंगल के बीच आंखे खुली और जंगलों में बचपन ही नहीं जीवन गुजरा आज अपने लिए मुखर होती जा रही हैं। महिलाओं में पचास फीसद महिलाएं अपना नाम लिख कर हस्ताक्षर करती हैं ।
बैंकों, डाकघर में अपनी आजीविका से पुरुषों से बचाकर खाता खोल चुकी हैं। समाज के अधिकारों के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों के आगे बेझिझक अपनी बातें रखती हैं। गाय, बकरी, मुर्गी पालन होने लगा राजि समाज के पुरुष आज भी अपनी आदतों में सुधार नहीं कर सके हैं। वहीं महिलाएं मेहनत, मजदूरी के साथ गाय, बकरी और मुर्गी पालन कर आजीविका करने लगी हैं। पूरे परिवार की जिम्मेदारी संभाल कर बच्चों को पढ़ाने का कार्य भी कर रही हैं। एक स्वयंसेवी संस्था अर्पण की महिला सदस्यों द्वारा इनके बीच रह कर जागरुक करने का प्रयास सफल हो रहा है। अलबत्त्ता अभी कूटा, चौरानी जैसे क्षेत्रों में मजूदरी नहीं मिलने की समस्या जीवन स्तर उठाने में बाधक बनी है।