पिथौरागढ़ की चर्चित ‘खुदा’ पूजा शुरू ; यहाँ अलखनाथ रूप में पूजे जाते हैं भगवान शिव

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मुनस्यारी (पिथौरागढ) : चीन सीमा से लगी मुनस्यारी तहसील अपनी विविधताओं के लिए भी जानी जाती है। आधा संसार, आधा मुनस्यारी नाम से चर्चित इस तहसील के दर्जनों गांवों में एक अद्भुत पूजा भी चर्चित है। इस पूजा का नाम तो खुदा पूजा है, परंतु सनातनी हिंदू इस पूजा में भगवान शिव के अलखनाथ रूप की पूजा करते हैं।

वैसे तो यह पूजा विषम वर्षों में होती है, परंतु कुछ गांवों में बारह साल के बाद होती है। मार्गशीर्ष और पौष माह में शुक्ल पक्ष में होने वाली यह पूजा तीन से लेकर बाइस दिन तक चलती है। यह अनूठी पूजा इस बार यहां सोमवार से शुरू हुई है।

इस तरह होती है खुदा पूजा 

मुनस्यारी के अलग-अलग गांवों में होने वाली यह पूजा किसी गांव में तीन दिन तो किसी गांव में सात दिन और कुछ गांवों में लगातार 22 दिनों तक होती है। खुदा पूजा रात के अंधेरे में होती है। जिस मकान में अलखनाथ की पूजा होती है उसकी छत का एक हिस्सा खुला छोड़ा जाता है।। मान्यता है कि छत के इसी खुले हिस्से से भगवान अलखनाथ पूजा में आते हैं।

पूजा के पहले दिन श्रद्धालु पूजा में काम आने वाले देवडांगरों को गाजे-बाजे के साथ पवित्र नदियों, नौलों में स्नान कराते हैं। पूजा स्थल को जलाभिषेक और पंचामृत छिड़क कर उसे पवित्र किया जाता है। दिन में अलखनाथ, दुर्गा, कालिका के साथ स्थानीय देवी देवताओं की स्थापना की जाती है।

सायं काल को गणेश पूजन के साथ महाआरती होती है। आरती के बाद  जगरिए अलखनाथ की गाथा का गायन करते हैं। इसके बाद देवता अवतरित होते हैं और ढोल नगाड़ों की थाप पर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। पूजा के शक्तिस्थल पर कपड़े का पर्दा लगाया जाता है। इस संबंध में खुदा पूजा में जागर गाने वाले गायक हरकोट निवासी नैन राम बताते हैं कि अलखनाथ भगवान शिव के रूप हैं। वह एकांत में शुचिता वाले स्थान पर रहना पसंद करते हैं।

पदम वृक्ष को दिया जाता है न्यौता 

खुदा पूजा के दौरान पद्म वृक्ष को न्यौता दिया जाता है। पदम वृक्ष पुराणों से लेकर स्थानीय धार्मिक कार्यों में अति महत्व का माना जाता है। जब ग्रामीण पदम के वृक्ष को न्यौता देने उसके पास जाते हैं तो वहां पर मेला लगता है। जागरण के दिन पदम वृक्ष की टहनियों को गाजे बाजे के साथ डलिया में रखकर पूजा स्थल तक लाया जाता है। इस दिन रात्रि को चार बार महा आरती का आयोजन होता है। दूसरी सुबह विशाल भंडारा होता है।

इस संबंध में चौना गांव के नैन राम बताते हैं कि द्वापर युग में सुद्धेनाथ और बुद्धेनाथ की तपस्या से खुश होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें पाताल लोक से पदम वृक्ष दिया था और इस वृक्ष की विशेषता बताई थी। तभी से पदम वृक्ष को हिंदू धर्मावलंबी पवित्र मानते आए हैं।

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