देहरादून। उत्तरकाशी जिले की 54-वर्षीय गीता पिछले 30 वर्षो से समाज सेवा की मिसाल गढ़ रही हैं। राज्य आंदोलन में भाग लेने से लेकर जेल जाने, गांव में नर्सरी लगाकर 1.60 लाख पौधे निश्शुल्क वितरित करने और पौधारोपण करने के बाद अब नशामुक्ति आंदोलन के जरिये युवाओं को नशे से दूर रहने का संदेश दे रही हैं।
गंगा स्वच्छता में भाग लेने के साथ स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार कर रही हैं। गीता का पशु प्रेम भी उतना ही व्यापक है, जितना लोगों की सेवा में योगदान। जहां भी कोई पशु बीमार व घायल हो उसे तुरंत इलाज करवाती हैं। उनके इस सेवा भाव को देखते हुए प्रदेश सरकार ने उन्हें तीलू रौतेली पुरस्कार प्रदान किया है।
गांव को हरा-भरा रखने के लिए पौधारोपण
उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लाक स्थित जोशीयाड़ा ग्राम न्यू लादाड़ी निवासी गीता गैरोला गंगा स्वच्छता से लेकर गांव को हरा-भरा रखने के लिए पौधारोपण करने का कार्य कर रही हैं। वहीं अपने सुरीले कंठ से गढ़वाली गीतों के जरिये युवाओं को नशे की लत से दूर रहने, कल्याणकारी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने, जंगली जानवरों के आतंक से निजात दिलाने के लिए अधिकारियों तक बात पहुंचाने का कार्य कर रही हैं।
गीता कहती हैं, समाजसेवा की भावना उनमें बचपन से ही थी। वर्ष 1994 में पृथक राज्य आंदोलन से जुड़कर उन्होंने भी महिलाओं को एकत्र कर हर दिन सड़कों पर प्रदर्शन कर धरना दिया। इस बीच पुलिस ने गिरफ्तार कर सात दिन के लिए उत्तरकाशी जेल भेज दिया। जब जेल से बाहर आईं तो देखा कि कई लोग परेशान हैं, किसी को पानी नहीं मिल रहा तो कई दवा लेने अस्पताल नहीं जा पा रहा। उनकी यह पीड़ा देखी नहीं गई और ठान लिया कि जब तक स्थिति सुधर नहीं जाती, सेवा करती रहेंगी।
कहती हैं, पति भरोसा राम गैरोला वन विभाग में थे तो उन्होंने नर्सरी खोलने का सुझाव दिया। इसके बाद वर्ष 1986 में नर्सरी लगाई, जहां 1.70 लाख पौधे रखे गए। विभाग ने इनमें से सिर्फ 10 हजार पौधे ही लिए। शेष पौधों का क्या करें, इसलिए मन में आया कि स्कूली बच्चे, ग्रामीण व सामाजिक संगठन से जुड़े लोगों के माध्यम से इन पौधों को क्षेत्र में रोपकर धरा को हरा-भरा किया जाए।
श्रीदेव सुमन मंच ने भी इस कार्यक्रम में योगदान दिया और दो महीने के भीतर इन पौधों को विभिन्न क्षेत्रों में लगाया गया। इसके अलावा वर्ष 2003 से गंगा स्वच्छता अभियान चलाया, जिसमें नदी किनारे का कूड़ा एकत्रित कर डंपिग जोन तक पहुंचाया गया। लोगों को कूड़ा-कचरा न डालने के लिए गीत व नृत्य नाटिका के माध्यम से जागरूक किया। अभी भी स्वच्छता अभियान में 20 से अधिक लोग जुड़े हैं।
बूचड़खाना के विरोध में आंदोलन
गीता ने बताया कि वर्ष 2004 में क्षेत्र में 24 बूचड़खा थे, जिनकी गंदगी नदी में जा रही थी। इससे न सिर्फ क्षेत्रवासी, बल्कि यहां आने वाले यात्री भी परेशान रहते थे। ऐसे में बूचड़खानों को हटाने के लिए आंदोलन शुरू किया। इसमें काफी ग्रामीण भी शामिल हुए। कई बार धमकी देते हुए आंदोलन खत्म करने को कहा गया, लेकिन आज भी यह आंदोलन जारी है।
शराब के विरोध में सड़क पर उतरी महिलाएं
वर्ष 2014-15 में शराब का ठेका बाजार से जोशियाड़ा की तरफ लाने का महिलाओं ने विरोध किया। गीता भी इस आंदोलन में शामिल हुई और युवाओं को नशे से दूर रहने के लिए जागरूक किया। एक महीने तक चला यह आंदोलन सफल रहा। इसके अलावा वर्ष 2009-10 में मनेरी से ऊपरी क्षेत्र में 600 मेगावाट की परियोजना बन रही थी, जिसके विरोध में धरना-प्रदर्शन किया। बाद में संबंधित कंपनी को हाथ पीछे खींचने पड़े।
लगा बंदर पकड़ने को पिंजरा
वर्ष 2004 में बंदर व सुअरों का क्षेत्र में काफी आतंक था। फसलों से नुकसान पहुंचाने के साथ ही बंदर घरों में घुस जाते थे और लोगों पर हमला कर देते। वन विभाग को इस बारे में बताया, लेकिन उसने गंभीरता से नहीं लिया। गीता ने ग्रामीणों को इकट्ठा कर वन विभाग के कार्यालय पर लगातार धरना-प्रदर्शन किया। छह वर्ष तक चले इस आंदोलन के बाद वर्ष 2011 में विभाग ने पिंजरा लगाया।
36 वर्ष की उम्र में किया आठवीं पास
गीता ने बताया कि वह पहले अंगूठा लगाती थीं। एक बार चुनाव के दौरान जब पीठासीन अधिकारी ने उन्हें साइन करने की जगह अंगूठा लगाते देखा तो प्रौढ़ शिक्षा के तहत पढ़ाई करने की सलाह दी। इसके बाद बच्चों ने पेंसिल से नाम लिखना सिखाया। अखबार पढ़कर शब्दों को जाना। 36 वर्ष की उम्र में जूनियर हाईस्कूल उडरी से आठवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। आज सभी कुछ पढ़ लेती हूं। कार्यालयों में जाकर दस्तावेजों को समझ लेती हूं।