देहरादून। संवाददाता। देश के सबसे ईमानदार आईएफएस अधिकारियो में से एक संजीव चतुर्वेदी को जीरों टाॅलरेंस वाली टीएसआर सरकार ने जांच के मामलों से दूर रखा है। इन्होंने हरियाणा में हुड्डा सरकार के काले कारनामों की पोल खोलकर रख दी थी। ये अफसर एम्स दिल्ली में जॉइंट सेकेट्री और चीफ विजलेंस अधिकारी के रूप में भी नाम कमा चुके हैं। इन्हें साल 2015 में रेमन मैग्सैस पुरुस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
देश के लोग इन्हें ईमानदार ऑफिसर के रूप में जानते। भ्रष्टाचार तो इनके नाम से कांपता है। हरीश रावत सरकार ने इन्हें हल्द्वानी वन विभाग के अनुसंधान शाखा में भेज कर इन्हें सजा दी, मगर अब भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरों टोलरेंस की सरकार है पांच महीने हो गए ईमानदार अफसर क्या अभी भी इंतजार करेंगे, कि उन्हें उचित जिम्मेंदारी दी जाए जिसके वो लायक हैं।
सरकार यदि वन विभाग के अवैध खनन को रोकना चाहती है तोे संजीव चतुर्वेदी जैसे ईमानदार अफसरों को इसकी जिम्मेंदारी दी जानी चाहिए। इसके अलावा आईएफएस मनोज चंद्रन ने करोड़ो का फर्जीवाड़े का खुलासा अल्पसंख्यक समाज कल्याण में कर दिखाया, तो फिर चतुर्वेदी को भी किसी इन्वेस्टीगेशन में लगाया जा सकता था। संजीव चतुर्वेदी ने जब उत्तराखंड जॉइन किया तो उन्होंने स्वेच्छा से शासन को लिख के दिया था, कि उन्हें जांच पड़ताल के काम दे दिए जाएं तब हरीश सरकार थी जिसे पता था कि ये कांग्रेस के भ्रष्टाचारों की पोल खोल देगा। मगर अब जीरो टाॅलरेंस की सरकार है, फिर किस बात का डर है। एक ओर सरकार लोकपाल विधेयक विधान सभा मे रख चुकी है, एनएच घोटाला सीबीआई के अंडर चल रहा है। ऐसे में जरा संजीव चतुर्वेदी को भी कुछ ईमानदारी दिखाने का अवसर मिलना चाहिए। अभी बड़े बड़े निगमो में घोटाले भरे पड़े है बहुउद्देशीय वित्त निगम, जलनिगम, खाद्यनिगम जिसमें केंद्र सरकार व विश्व बैंक का पैसा आता है जरा एक-एक करके देखलो कितने बड़े गड़बड़झाले हैं, सवाल एक चतुर्वेदी का नही ऐसे कई अधिकारी है जिन्हें उम्मीद थी कि जीरांे टाॅलरेंस की सरकार आएगी तो उन्हें जनहित में कार्य करने की जिम्मेंदारी दी जाएगी।