देश की सबसे पवित्र नदी माने जाने वाली गंगा प्रदूषण के कारण अपना नैसर्गिक स्वरुप निरन्तर खोती जा रही है . गंगा का बढ़ता प्रदूषण आज बेहद चिंता का कारण बन रहा है . गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए विभिन्न केन्द्र सरकारों द्वारा कई परियोजनाएँ चलाई गई और चलाई जा रही हैं , इसके बाद भी गंगा में प्रदूषण कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है . गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए ही अब राष्ट्रीय हरित न्याधिकरण ( एनजीटी ) ने गंगा में किसी भी तरह का कचरा फेंके जाने पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाए जाने के आदेश दिए हैं .
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार की पीठ ने गत 13 जुलाई 2017 को गंगा की सफाई के मुद्दे पर दूसरे चरण के अपने आदेश में हरिद्वार से उन्नाव के बीच लगभग 500 किलोमीटर के दायरे में गंगा नदी के तट से 100 मीटर के क्षेत्र को ” गैर निर्माण क्षेत्र ” घोषित कर दिया है . इस आदेश के बाद अब गंगा तट से 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह का निर्माण प्रतिबंधित कर दिया गया है .साथ ही गंगा तट से 500 मीटर के क्षेत्र में किसी भी तरह के कूड़े को एकत्र करने पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है . गंगा में किसी भी तरह का प्रदूषण करने पर पचास हजार रुपए जुर्माना लगाने के आदेश भी एनजीटी के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार ने दिया है . न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार ने अपने आदेश में गंगा के नजदीक कूड़ा निस्तारण संयंत्र लगाने और नालियों की सफाई के लिए दो वर्ष का समय देने के साथ ही गंगा की सफाई से सम्बंधित परियोजनाओं को पूरा करने के निर्देश भी दिए हैं .
एनजीटी ने अपने 543 पन्नों के निर्णय में आदेश की निगरानी और इस सम्बंध में रिपोर्ट पेश करने के लिए पर्यवेक्षकों की समिति का भी गठन किया है .समिति को एक नियमित अन्तराल में रिपोर्ट देते रहने के भी निर्देश दिए गए हैं . फैसले में यह भी टिप्पणी की गई है कि वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा अब तक गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए लगभग 3,700 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं , उसके बाद भी गंगा के प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई है . उल्लेखनीय है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 2015 में बहुत बड़े स्तर पर ” नमामि गंगे ” परियोजना की शुरुआत की थी और इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 2020 तक पॉच साल की समय सीमा तय की है .
एनजीटी ने यह आदेश पर्यावरणविद् एमसी मेहता की एक याचिका पर दिया . जिसे उन्होंने 1985 में सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किया था . जिसे 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने एनजीटी को सौंप दिया था . इस याचिका पर सुनवाई करते हुए गत 31मई 2017 को अपना आदेश सुरक्षित करने से पहले एनजीटी ने केन्द्र , उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड सरकार , प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पक्षकारों की दलीलों को भी सुना . एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए . उसे चमड़े के कारखानों को जाजमऊ से उन्नाव के बीच गंगा के किनारों से किसी अन्य जगह पर अगले छह हफ्ते में स्थानान्तरित करना चाहिए . उसने उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड सरकारों को गंगा और उसकी सहायक नदियों के घाटों पर होने वाले धार्मिक कर्मकाण्डों के बारे में भी एक दिशा निर्देश जारी करने को कहा है , ताकि गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण कम हो सके .
मेहता की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में 32 साल तक सुनवाई चलती रही .इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दो बार 1987 व 1988 में अंतरिम आदेश भी जारी किए. इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 29 अक्टूबर 2014 अपने अंतरिम आदेशों पर निगरानीका काम एनजीटी को सौंप दिया और फिर 24 जनवरी 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरणविद् एमसी मेहता की याचिका को भी एनजीटी को स्थानान्तरित कर दिया . इसका एक कारण यह भी था कि 2010 में गठित किए गए एनजीटी के पास गंगा के प्रदूषण से सम्बंधित याचिकाएँ विचाराधीन थी .
उल्लेखनीय है कि गंगा और उसकी सहायक नदियॉ देश के लगभग 40 प्रतिशत आबादी को पानी उपलब्ध कराती हैं . देश के 11 राज्यों के 50 करोड़ लोग जल के लिए गंगा और उसकी सहायक नदियों पर ही निर्भर हैं . गंगा में निरन्तर बढ़ते प्रदूषण का कारण उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में इसके किनारे स्थापित 760 से अधिक औद्योगिक संयंत्र हैं जिनका कचरा सीधे गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है . एक सर्वे के अनुसार , केवल उत्तर प्रदेश में ही गंगा के किनारे लगभग 6 हजार हेक्टेयर भूमि पर अवैध रुप से अतिक्रमण कर के पक्का निर्माण कर दिया गया है .गंगा के किनारे बनाए गए 118 शमशान घाटों को भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण माना गया हैं , क्योंकि कई बार लोग अधजले शवों को गंगा में बहाकर चल देते हैं . प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के 84 घाटों में से अधिकतर पर बने शौचालयों का गंदा पानी भी सीधे गंगा में ही प्रवाहित होता है .कानपुर के 23 बड़े गंदे नालों की गंदगी भी सीधे गंगा में जा रही है .
एक सर्वे के अनुसार , हर रोज 12 हजार एमएलडी सीवरेज गंगा में जा रहा है . जिसमें से मात्र 4 हजार एमएलडी सीवरेज को ही शोधित करने की व्यवस्था उपलब्ध है , बाकी सारी गंदगी सीधे ही गंगा में प्रवाहित हो रही है . इसी कारण से आर्सेनिक , जस्ता सहित अनेक प्रदूषणकारी तत्वों का स्तर गंगा में लगातर बढ़ रहा है . केवल क्रोमियम का स्तर ही अधिकतम तय मानक से लगभग 70 प्रतिशत अधिक है . इसी तरह गंगा में पारे का स्तर भी हर वर्ष बढ़ रहा है . जिससे गंगा में पाए जाने वाले विभिन्न प्रजाति की मछलियों सहित अनेक जलीय जीवों का जीवन गहरे संकट में है . गंगा की ऊपरी और मध्य सतह में 179 प्रकार की मछलियॉ पाई जाती हैं . इसके अलावा 90 प्रजाति के उभयचर गंगा के प्रवाह पथ में पलते हैं . जमीनी प्रजाति की 289 और जलीय प्रजाति की 219 प्रकार के जीव – जन्तु भी गंगा और उसकी सहायक नदियों में मौजूद हैं . गंगा 315 प्रजातियों के पक्षियों , 42 प्रजाति के स्तनधारियों और 35 प्रकार के रेंगने वाले जीवों का भी घर है . एनजीटी के इस नए आदेश के बाद गंगा को प्रदूषण मुक्त देखने वाले लाखों , करोड़ों लोगों की निगाहें अब इस बात पर हैं कि इन आदेशों को प्रदेश सरकारें गम्भीरता से अमल में लाती हैं या नहीं !