उत्तराखण्ड में महिलाओं की एकता का प्रतीक “पल्ट परंपरा”

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देवभूमि उत्तराखण्ड के पहाड़ के गांव जहां कृषि प्रधान हैं वहीं गांवों में महिलाओं का जीवन कठिन व संघर्षपूर्ण रहा है | पहाडों की विषम भौगोलिक परिस्थितियां, कठिन कृषि कार्य को सदैव ही महिलाओं ने अपने साहस व एकता के बल पर आसान बना दिया है, और इसी एकता का प्रतिक है ” पल्ट प्रथा” जिसे कहीं कहीं पौल्ट शब्द से भी जाना जाता है |

महिलाऐं ही पहाड़ के कठिन कृषि कार्य की धूरी हैं| और महिला शक्ति सदैव ही सम्मान योग्य रही हैं चाहे वह कोई भी आंदोलन हो या समाज के विकास के लिए कोई भी सहभागिता हो सभी महिलाओं की एकता ने लोहा मनवाया है | पल्ट प्रथा भी कृषि कार्य व सामाजिक सहभागिता की महत्वपूर्ण धूरी रही है | पल्ट प्रथा में जैसे पल्ट शब्द से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पलटना या बारी बारी | पल्ट प्रथा में भी कोई भी कार्य महिलाऐं बारी बारी से करती है जैसे एक दिन एक महिला के वहां सभी महिलाऐं कार्य करेंगीं तथा दूसरे दिन दूसरी महिला के वहां , इसी प्रकार क्रम चलता रहता है और कब कठिन कार्य भी आसान बनकर पूर्ण हो जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता | यह सदैव महिलाओं की एकता आपसी प्रेमभाव व मानवता को संजोने में कारगर सिद्ध हुआ है |

पहाड़ों में आज भी महिलाएं पल्ट प्रथा से काम कर रही हैं। पल्ट की रस्म को महिलाएं बखूबी निभाती हैं। इसके तहत एक-दूसरे के खेती से संबंधित कामों में हाथ बंटाती हैं। यह प्रथा गांवों की एकता, आपसी, मेलजोल व स्नेह की अद्भुत बानगी है। यूं तो वर्ष भर गांवों में पल्ट प्रथा का चयन रहता है, लेकिन कृषि कार्य के समय यह प्रथा जोर पकड़ लेती है। गेहूं की कटाई, धान की मढाई, रोपाई, गुड़ाई, निराई और घास आदि कटान के लिए यह प्रथा नजर आती है, लेकिन गांवों के खेतों में मोव सराई (गोबर की खाद) के समय इस प्रथा का काफी महत्व है। पल्ट प्रथा में प्रतिदिन महिलाएं किसी एक परिवार का सहयोग करती हैं। बारी- बारी से गांव की महिलाओं द्वारा प्रत्येक परिवार के यहां कार्य करने का क्रम चलता रहता है।

केवल कृषि कार्य के लिए ही नहीं बल्कि शादी बरातों के समय सामान लाने, मकान निर्माण के समय, बाजार से सामान लाने में भी पल्ट प्रथा नजर आती है। पल्ट की रस्म को महिलाएं बखूबी निभाती हैं। इसके तहत एक-दूसरे के खेती से संबंधित कामों में हाथ बंटाती हैं। यह प्रथा गांवों की एकता, आपसी, मेलजोल व स्नेह की अद्भुत बानगी है। यूं तो वर्ष भर गांवों में पल्ट प्रथा का चयन रहता है, लेकिन कृषि कार्य के समय यह प्रथा जोर पकड़ लेती है। देवभूमि के पहाड़ के गांवों की एकता को संजोने वाली बाखलियां भले ही विरान हो रही हो किंतु देवभूमि के गांवों में आज भी महिलाओं की एकता का प्रतिक पल्ट प्रथा अपने अस्त्तिव को संजोये हुवे है जो कठिन से कठिन कार्य को भी आसान बना देते हैं वही पल्ट प्रथा एकता अखण्डता , आपसी प्रेम को संजोये हुवे है सदैव मानवता बनी रहे देवभूमि की मातृश्क्ति को नमन देवभूमि को नमन |

भुवन बिष्ट
मौना, (रानीखेत)
अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड

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