देहरादून। हमारे संवाददात
उत्तराखंड में सगंध पौधों की खेती को बढ़ावा मिलने से रोजगार के साधन बढ़ने के पूरे आसार जताए जा रहे हैं। जिससें राज्य के किसानों की तकदीर बदल गई है।
15 किसानों कि इस पहल के परिणाम चैकाने वाले आए हैं। अब इस तरह की खेती से राज्य के करीब 18 हजार किसान जुड़ चुके हैं।
उत्तराखंड के लिए पलायन एक अभिषाप साबित हुआ है। ऐसे में दून स्थित सगंध पौधा केंद्र (कैप) की सालों की मेहनत सफल हुई है। केंद्र द्वारा वर्ष 2004 में सगंध पौधों की खेती को लेकर 15 किसानों ने जो पहल शुरू की थीं। वहीं अब साढ़े आठ हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सगंध फसलों की खेती की जा रही है और सालाना टर्नओवर है 70 करोड़। इन किसानों द्वारा मुख्य रूप से लेमनग्रास, रोज, कैमोमाइल और तेजपात की खेती की जाती है।
इनमें सुदूर पर्वतीय क्षेत्र के सीमांत एवं लघु कृषक शामिल हैं तो मैदानी क्षेत्र के भी।
देवभूमि की इस सफलता का लोहा पड़ोसी राज्य हिमाचल ने भी माना लिया है, जिसे देखते वह वह भी अपने यहां कैप के पैटर्न पर सगंध पौधों की खेती की नीति बना रहा है।
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में पलायन का असर खेती- किसानी पर भी पड़ा। अविभाजित उत्तर प्रदेश में यहां करीब आठ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती थी और 2.66 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर थी, लेकिन अब खेती का रकबा घटकर सात लाख हेक्टेयर पर आ गया। बंजर जमीन का रकबा बढ़कर 3.66 लाख हेक्टेयर हो गया।
इस सूरतेहाल में उम्मीद की किरण जगाई देहरादून के सेलाकुई स्थित राज्य सरकार के प्रतिष्ठान सगंध पौधा केंद्र ने। कैप के वैज्ञानिक प्रभारी नृपेंद्र चैहान बताते हैं कि 2004 में देहरादून की वन सीमा से सटे राजावाला गांव के 70 किसानों को बेकार पड़ी भूमि में लेमनग्रास की खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया, लेकिन 55 ने इसे बीच में ही छोड़ दिया।
15 किसान लगातार जुड़े रहे और बरसात में जब फसल कटने पर उन्हें मुनाफा हुआ तो अन्य लोगों ने भी इसका महत्व समझा। इसके बाद राजावाला के 200 किसान जुड़ गए तो गांव में ही आसवन संयंत्र भी लग गया, जिससे लेमनग्रास का तेल निकालकर सीधे कैप को भेजा जाने लगा।
कैप अब 109 एरोमा क्लस्टर तैयार कर चुका है। कैमोमाइल के फूल तो यूरोप तक जा रहे हैं। इसके फूलों को चाय बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। सगंध खेती कर रहे किसान नरेंद्र सिंह बिष्ट और सीएस बिष्ट कहते हैं कि बंजर हो चुकी 3.66 लाख हेक्टेयर भूमि को फिर से आबाद कर किसानों की झोलियां भरने में सगंध खेती बेहद कारगर हो सकती है।
गुलाब से महकी आर्थिकी
जोशीमठ (चमोली) क्लस्टर में कैप के माध्यम से पे्रमनगर-पसारी व मेरंग गांवों में 39 किसानों ने एक हेक्टेयर क्षेत्र में डेमस्क गुलाब का रोपण कर इसकी खेती की शुरुआत की। वर्तमान में तमाम गांवों के 128 किसान भी इससे जुड़ गए हैं। यहां के किसान प्रतिवर्ष 15 से 20 कुंतल उच्च गुणवत्तायुक्त गुलाब जल व हर्ब का उत्पादन कर प्रतिवर्ष तीन लाख की आय प्राप्त कर रहे हैं।
इसलिए है फायदेमंद क्योंकि इसे बंजर भूमि पर आसानी से उगा सकते हैं, संगध पौधों को जानवर नहीं खाते, आसवन संयंत्र से संगध हर्ब को काफी मात्रा में किया जा सकता है परिवर्तित, कैरी करने में आसान, सडने की भी समस्या नहीं, खेतों में हरियाली के साथ आर्थिक लाभ भी, यह भी पढ़ेंरू चिट्ठी के साथ ही हरियाली का संदेश भी बांट रहा डाकिया, यह भी पढ़ेंरू साढ़े छह हजार फीट ऊंची पहाड़ी को हराभरा करने को कई युवा आगे आए हैं।