उच्च हिमालय में मानव हलचल न होने से इस बार बुग्यालों ने ओढ़ी ब्रह्मकमल की चादर

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  • समुद्रतल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलने वाला ब्रह्मकमल इस वर्ष अच्छी मात्रा में उग रहा है। लॉकडाउन में यात्रा व पर्यटन पर प्रतिबंधित व अनलॉक में सीमित संख्या में आवाजाही ने इस दिव्य पुष्प को नया जीवन देने के साथ इसके बेहतर उत्पादन में सहायक बनी है।
  • पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली का कहना है कि उच्च हिमालय क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप कम से कम करना होगा।
    यात्रा व तीर्थाटन का सीमित स्तर पर संचालित होने के कारण बुग्यालों में मानवीय हस्तक्षेप नहीं हुआ है, जिससे ब्रह्मकमल का दोहन नहीं हो रहा है।

देहरादून : उच्च हिमालयी क्षेत्र में मानवीय दखल न होने से प्रकृति अपनी निराली छटा बिखेरने में बिल्कुल भी कंजूसी नहीं करती। बुग्यालों में इस बार यही हुआ है। राष्ट्र पुष्प ब्रह्मकमल जीभर कर खिला है तो तरह-तरह के फूल, वनस्पतियां अपने यौवन की छटा बिखेर रही हैं। कोरोना काल उत्तराखंड के राज्य के हिमलयी क्षेत्र के लिए संजीवनी बना है।

उच्च हिमालय के बुग्यालों व तलहटी पर इन दिनों ब्रह्मकमल के असंख्य फूल प्रकृति के सौंदर्य को बढ़ा रहे हैं। केदारनाथ आपदा के बाद यह पहला मौका है, जब बुग्यालों में राज्य पुष्प का दोहन न्यून स्तर पर है।

समुद्रतल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलने वाला ब्रह्मकमल इस वर्ष अच्छी मात्रा में उग रहा है। लॉकडाउन में यात्रा व पर्यटन पर प्रतिबंधित व अनलॉक में सीमित संख्या में आवाजाही ने इस दिव्य पुष्प को नया जीवन देने के साथ इसके बेहतर उत्पादन में सहायक बनी है।

केदारनाथ से लगभग सात किमी ऊपर स्थित वासुकीताल के आसपास व बुग्याली क्षेत्र में असंख्य ब्रह्मकमल खिले हुए हैं, जो वहां के सौंदर्य को और बढ़ा रहा है। मद्महेश्वर, तुंगनाथ, वेदनी बुग्याल, रूपकुंड समेत अन्य उच्च हिमालय क्षेत्रों में भी ब्रह्मकमल अधिक संख्या में खिले हैं।

पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली का कहना है कि उच्च हिमालय क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप कम से कम करना होगा।
यात्रा व तीर्थाटन का सीमित स्तर पर संचालित होने के कारण बुग्यालों में मानवीय हस्तक्षेप नहीं हुआ है, जिससे ब्रह्मकमल का दोहन नहीं हो रहा है।

डीएफओ केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग गोपेश्वर/चमोली अमित कंवर का कहना है की इस बार पुष्प को अपना पूरा जीवन व्यतीत करने का समय मिला है, जो आने वाले समय के लिए शुभ संकेत है।

लेकिन, यह स्थिति कब तक रहेगी कहना कठिन है। चंद रुपयों के लालची परेशां हैं। लगे पड़े हैं कि जल्द से जल्द उनके रिजार्ट होटल फुल हों चाहे हिमालय की ऐसी तैसी हो जाय!

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