उत्तराखंड का सियासी समर बहुत दूर नहीं है। इसके लिए सेनाएं सजने लगी हैं। विधानसभा चुनाव के रण में उतरने के लिए चिर प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस एक बार फिर आमने-सामने हैं। दोनों ही दलों का चुनावी इतिहास राज्य में दो-दो चुनाव जीतने का है। सत्तारोधी रुझान की हवा पर सवार होकर दलों ने चुनावी वैतरणी पार की और प्रदेश में सरकार बनाई। लेकिन 2002 को छोड़कर 2017 और 2012 में भाजपा और कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। दोनों दलों ने जोड़तोड़ से सरकार बनाई। अलबत्ता, 2017 में भाजपा ने प्रचंड बहुमत का रिकाॅर्ड बनाया और सत्ता पर काबिज हुई।
एक बार फिर भाजपा 2022 के चुनावी संग्राम में अब तक का सबसे अनूठा रिकार्ड बनाने को बेताब दिखाई दे रही है। प्रदेश में सत्ता में कांग्रेस के बाद भाजपा और भाजपा के बाद कांग्रेस के मिथक इस बार तोड़ देना चाहती है। इसलिए उसने ‘अबकी बार साठ पार’ का लक्ष्य बनाया है। कांग्रेस एक फिर केंद्र और राज्य के सत्तारोधी रुझान के दम पर चुनावी नैया पार करने की सोच रही है। महंगाई, बेरोजगारी, पलायन, गैरसैंण, देवस्थानम बोर्ड और भू कानून कांग्रेस के मुख्य चुनावी हथियार हैं।
इन चिर प्रतिद्वंद्वियों के मध्य आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के चुनावी फाॅर्मूले के साथ उत्तराखंड के समर में उतर गई है। भाजपा और कांग्रेस के दो राजनीतिक विकल्पों के बीच वह प्रदेश की जनता को तीसरा विकल्प देने की कोशिश कर रही है। तीसरे विकल्प की दौड़ में बसपा, सपा, यूकेडी व वामपंथी दल भी शामिल हैं लेकिन पिछले चार चुनाव का रिकार्ड बता रहा है कि उनकी भूमिका अब उपस्थिति दर्ज कराने और वोटों के समीकरण को मामूली अंतर से प्रभावित करने की रही है।
कुल मिलाकर 2022 का चुनाव समर बेहद रोमांचक होने के आसार हैं।कांग्रेस की वापसी का इरादा और आम आदमी पार्टी की रणनीति ने चुनाव को बेहद दिलचस्प बना दिया है। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ेंगे, वैसे-वैसे चुनावी संग्राम का रोमांच चरम पर पहुंचेगा।
चुनाव और सरकारों की दास्तान
अंतरिम सरकार: नौ नवंबर 2000 को राज्य बना। उस समय उत्तराखंड में अंतरिम विधानसभा में 30 सदस्य थे। इनमें यूपी के समय चुने हुए 22 विधायक और आठ विधान परिषद सदस्य थे। 22 विधायकों में 17 भाजपा के, एक तिवारी कांग्रेस का, एक बसपा और तीन समाजवादी पार्टी का था।
2002 कांग्रेस ने बनाई सरकार
14 फरवरी 2002 को उत्तराखंड राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने 36 सीटें जीतकर सरकार बनाई। भाजपा 19 सीटों पर सिमट गई। बसपा ने 7 सीटें जीतीं, जबकि क्षेत्रीय दल यूकेडी भी चार सीटें जीतने में कामयाब रही। एनडी तिवारी मुख्यमंत्र बनें।
2007 में किसी को भी बहुमत नहीं, जोड़तोड़ से भाजपा ने बनाई सरकार
चुनावी मुद्दे: भाजपा ने लालबत्ती को मुद्दा बनाया। कांग्रेस राज के 56 घोटाले भी चुनावी मुद्दा बना। दरोगा भत्री, पटवारी भर्ती जेट्रोफा घोटाला खूब गरमाए। स्थायी राजधानी को लेकर भी सियासी दल जनता के बीच गए। सरकार गठन के बाद खंडूड़ी ने राजधानी आयोग बनाया। 56 घोटालों की जांच को लेकर आयोग का गठन किया।
2012 में कांग्रेस ने जोड़तोड़ से बनाई सरकार
2012 के विधानसभा चुनाव में भी किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। भाजपा 31 सीटों पर सिमट गई तो कांग्रेस 32 सीटें लेकर सबसे बड़ा दल बनकर उभरी। उसे सरकार बनाने के लिए बसपा और निर्दलीय विधायकों का न सिर्फ सहयोग लेना पड़ा बल्कि उन्हें मंत्री बनाना पड़ा। शुरुआत विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बनें और उनके बाद सत्ता की बागडोर हरीश रावत ने संभाली।
चुनावी मुद्दा: इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा राज के जल विद्युत परियोजना, स्टर्डिया, कुंभ, ढैंचा बीज घोटाले का मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था। कांग्रेस ने भाजपा राज के 112 घोटालों के आरोप लगाए थे।
2017 में प्रचंड बहुमत से आई भाजपा
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 57 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई। कांग्रेस महज 11 सीटों पर सिमट गई। इस चुनाव में हरीश रावत दो सीटों से चुनाव हारे।
चुनावी मुद्दे: इस चुनाव में एनएच 74, टिहरी विस्थापितों की जमीन और छात्रवृत्ति घोटाले गरमाए। पीएम नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर ने कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त दे दी।
दल सीट वोट प्रतिशत
भाजपा 19 25.81
कांग्रेस 36 26.91
बसपा 07 11.20
यूकेडी 03 6.36
एनसीपी 01 4.02
निर्दलीय 03 16.63
दूसरा विधानसभा चुनाव 2007
भाजपा 34 31.90
कांग्रेस 21 29.59
सपा 0 5.88
बसपा 08 11.76
उक्रांद 03 6.38
एनसीपी 0 4.43
निर्दलीय 03 11.21
तीसरा विधानसभा चुनाव 2012
भाजपा 31 33.38
कांग्रेस 32 34.03
सपा 0 1.95
बसपा 03 12.28
उक्रांद 01 3.20
एनसीपी 0 0.67
निर्दलीय 03 12.82
चौथा विधानसभा चुनाव 2017
भाजपा 56 46.51
कांग्रेस 11 33.49
बसपा 0 7.04
उक्रांद 0 1.00
एनसीपी 0 0.29
निर्दलीय 02 10.38
नोट: 69 सीटों पर चुनाव हुआ था।