जांबाजी में नहीं वीरभूमि उत्तराखंड का कोई सानी, देश रक्षा को सर्वस्व न्योछावर

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बात जब भी देश की सरहदों की हिफाजत की होती है तो इसमें उत्तराखंड का नाम सबसे पहले आता है। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करना देवभूमि की पुरानी परंपरा रही है। सेना में सिपाही हो या फिर अधिकारी, उत्तराखंड का दबदबा कायम है। भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर पास आउट होने वाले कैडेट की संख्या भी इस सच्चाई को बयां करती है। जनसंख्या घनत्व के हिसाब से देखें तो उत्तराखंड देश को सबसे अधिक जांबाज देने वाले राज्यों में शुमार है। दशकों पूर्व से ही यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।

इस बात में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं कि उत्तराखंडी युवाओं में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। सैन्य अकादमी में साल में दो बार यानी जून और दिसंबर में आयोजित होने वाली पासिंग आउट परेड में इसकी झलक देखने को मिलती है। पिछले एक दशक के दौरान शायद ही ऐसी कोई पासिंग आउट परेड हो, जिसमें कदमताल करने वाले युवाओं में उत्तराखंडियों की तादाद अधिक न रही हो।

यहां यह बात गौर करने वाली है कि राज्य की आबादी देश की कुल आबादी का महज 0.84 प्रतिशत है। यदि इसकी तुलना सैन्य अकादमी से शनिवार को पासआउट होने वाले 319 भारतीय कैडेटों से करें तो इसमें राज्य के सहयोग का स्तर 43 कैडेटों के साथ करीब तेरह प्रतिशत है। इस मुकाबले अधिक जनसंख्या वाले राज्य भी उत्तराखंड के सामने कहीं ठहरते नहीं हैं।

पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के कैडेटों की संख्या भले ही सबसे अधिक 45 है, मगर इसकी तुलना वहां की आबादी के हिसाब से करें तो भारतीय सेना को जांबाज देने में अपना उत्तराखंड ही अव्वल नजर आता है। क्योंकि उप्र की आबादी का प्रतिशत देश की कुल आबादी का 16 फीसद है, जो उत्तराखंड से कई गुणा अधिक है। बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्य भी संख्या बल (पासिंग आउट कैडेट) में उत्तराखंड से पीछे हैं।

राज्यवार कैडेटों की संख्या

उत्तर प्रदेश-45

उत्तराखंड-43

हरियाणा-34

बिहार-26

राजस्थान-23

पंजाब-22

मध्य प्रदेश-20

महाराष्ट्र-20

हिमाचल प्रदेश-13

जम्मू-कश्मीर-11

दिल्ली-11

तमिलनाडु-7

कर्नाटक-6

केरल-5

आंध्र प्रदेश-5

चंडीगढ़-5

झारखंड-4

पश्चिम बंगाल-3

तेलंगाना-3

मणिपुर-2

गुजरात-2

गोवा-2

उड़ीसा-2

असम-2

मिजोरम-2

छत्तीसगढ़-2

मिजोरम-2

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