उच्च दबाव पर काम करने वाले इस वेंटिलेटर में मूल वेंटिलेटर के सातवें हिस्से के बराबर ही कल-पुर्जे इस्तेमाल किए गए हैं. इसके चलते इसकी लागत काफी कम हो गई है और यह इस्तेमाल में आसान हो गया है. इस सस्ते वेंटिलेटर के निर्माण में जो सामान लगेगा, वह बाजार में आसानी से उपलब्ध है. यह वेंटिलेटर कोरोना वायरस से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को सस्ता इलाज दिलाने में कारगर साबित होगा.
नई दिल्ली : अमेरिका के स्पेस रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा निर्मित उच्च क्षमता वाले सस्ते वेंटिलेटर (वाइटल) के उत्पादन के लिए भारत की तीन कंपनियों को लाइसेंस जारी किए गए हैं.
ये तीनों भारतीय कंपनियां – अल्फा डिजायन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड, भारत फोर्ज लिमिटेड और मेधा सर्वो ड्राइव्स प्राइवेट लिमिटेड हैं. जो साबित करता है कि जिन क्षमताओं के लिए पहले विश्व की नजर चीन पर रहती थी, अब उसकी जगह भारत ने ली है. नासा के जेट प्रोपल्सन लेबोरेटरी के इंजीनियरों ने महज 37 दिनों में कम लागत वाले इस वेंटिलेटर का प्रोटोटाइप तैयार किया है.
30 अप्रैल को आपातस्थिति में इसके इस्तेमाल की इजाजत अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) से ली गई. इस वेंटिलेटर को वाइटल (वेंटिलेटर इंटरवेंशन टेक्नोलॉजी एसेसिबिल लोकली) नाम दिया गया है. उच्च दबाव पर काम करने वाले इस वेंटिलेटर में मूल वेंटिलेटर के सातवें हिस्से के बराबर ही कल-पुर्जे इस्तेमाल किए गए हैं. इसके चलते इसकी लागत काफी कम हो गई है और यह इस्तेमाल में आसान हो गया है. इस सस्ते वेंटिलेटर के निर्माण में जो सामान लगेगा, वह बाजार में आसानी से उपलब्ध है. यह वेंटिलेटर कोरोना वायरस से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को सस्ता इलाज दिलाने में कारगर साबित होगा.
कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए मुफ्त लाइसेंस दिया है. वाइटल विकसित करने वाली टीम सभी ओर से मिल रहे सहयोग और प्रोत्साहन से काफी उत्साहित है. उसे उम्मीद है कि नई तकनीक दुनिया के लोगों को कोरोना वायरस से बचा पाने में काफी अहम भूमिका निभाएगी. नासा ने दुनिया की 21 कंपनियों को चुनकर उन्हें सस्ता वेंटिलेटर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है. ज्यादा उत्पादन के जरिये इसे जल्द ज्यादा उपयोग में लिया जा सकेगा. जिन कंपनियों को लाइसेंस दिए गए हैं, उनमें आठ अमेरिकी, तीन भारतीय और शेष दस अन्य देशों की कंपनियां हैं.