केवल कमाने से नहीं कमाने के बाद बांटने से नाम होता है- मोहन भागवत

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एयरो सिटी, नई दिल्ली, वरलक्ष्मी फाउंडेशन (जीएमआर ग्रुप) के सिल्वर जुबली समारोह में पूजनीय सर संघचालक मोहन भगवत जी का उद्बोधन

नई दिल्ली (विसंके):  मंत्री जी ने जो कहा उससे मैं 100 प्रतिशत सहमत हूं, कॉरर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी  ये तीन शब्द आने के बहुत पहले से जो कमाते हो उसमें से कितना देते हो उस पर तुम्हारी प्रतिष्ठा निर्भर है ये हमारे यहां पहले से मूल्यों में है। केवल कमाने से हमारे यहां नाम नहीं होता है कमाने के बाद बांटने से होता है और जीएमआर राव साहब बात करते हुए इमोशनल हुए अब वो इमोशनल ही तो सब कुछ है, रिस्पांसबिलिटी  कब समझ में आती है? जब मन  इमोशनल हो.  नहीं तो एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से क्या संबंध? कुछ दिन पहले मैंने एक खबर भी पढ़ी किसी एक बड़ी कंपनी में बेटे ने बाप को बेदखल कर दिया सब साधन होने के बाद ये भी अगर नहीं समझ में आता है तो क्यों नहीं आता हैं? इमोशनल यानी जो संवेदना है उसका हमारे यहां महत्त्व है और आज मैंने देखा जो काम उसमें वो संवेदना साफ झलकती है। कॉरर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी  कहना और किसी करने वाले को दे देना ये तो पहले फैशन से चला अब कानून से अनिवार्य है।

लेकिन ये शब्द फैशन में भी नहीं था और कानून भी नहीं था तब से ये काम चल रहा है। उस संवेदना के कारण और उन मूल्यों के कारण चल रहा है और मैंने जो देखा उसमें झलकता है, जो काम हो रहा है वो अत्यंत व्यवस्थित है उनके ब्रोशर में नहीं कहा हम प्रोफेशनली कर रहे हैं यानी एक-एक चीज उत्कृष्ट रहना चाहिए, ठीक- ठाक होनी चाहिए इस पर बहुत बल दिया गया और ये साफ दिखता है। आने वाले व्यक्ति को केवल कुशलता नहीं क्योंकि केवल कुशलता से नहीं होता है पहली बात आत्मविश्वास चाहिए यहां के स्किल ट्रेनिंग में वो आत्मविश्वास भी दिया जाता है आपके आमने जो लोग बोल रहे थे उनके बोलने से आपको पता चला होगा उनके आयु के लोग इतनी बड़ी सभा में बड़े लोगों के  सामने ठीक से बात करना कठिन मानते है, नहीं बोल पाते,हिम्मत नहीं होती परंतु ये हिम्मत भी इसमें मिलती है और साथ- साथ कुशलता मिलती है। उस कुशलता का उपयोग प्रमाणिकता के साथ करने का संस्कार भी मिलता है और दायित्व बोध भी मिलता है जो सबसे बड़ी बात है। रात को 2002, जून महीने का रीडर डाइजेस्ट पुराना मेरे हाथ लगा उस समय पढ़ा भी होगा लेकिन भूल गया हूंगा इसलिए तुरंत देखने लगा उसमें एक आर्टिकल था एक टीवी स्टार ने लिखा है “जितनी भलाई आप कर सकते है उतनी आप करते चलो क्योंकि अच्छाई कभी फालतू नहीं जाती”  वो कहता है मुझे एक कहानी मालूम है (वो कहता है) ‘एक व्यक्ति ने घर के खिड़की से रास्ते के उस पार एक छोटा सा रेस्टोरेंट था उसके दरवाजों की पैड़ियों को एक 18 साल के लड़के को साफ़ करते हुए देखा। वो 18 साल का लड़का उसको परिचित लगा उसने गौर से सोचा तो ध्यान आया उसके पिता जी के साथ उससे मिला था पिता जी नाम, फ़ोन नंबर उसके पास था उसने फ़ोन किया तुरंत और कहा तुम्हारे लड़के को मैं देख रहा हूं वो रेस्टोरेंट की पैड़ियां साफ कर रहा है, 18 साल का है, पढने की उम्र है उसको तुमने नौकरी पर क्यों लगाया तो पिता जी ने उसको कहा मुझे वेतन कम मिलता है और मुझे इतना बड़ा परिवार चलाना है, पढ़ने की उसकी इच्छा है और उसकी इच्छा का समर्थन मेरे मन में है भी लेकिन उसको मैं पैसा नहीं दे सकता इसलिए वो ये सारे काम करके पैसे इकट्ठा कर रहा है। उस व्यक्ति को ये बात मन में रह गई उसने फ़ोन रख दिया और जाकर उस लड़के को कहा तुम्हारा काम होने के बाद रात को सामने मैं रहता हूं मुझे मिलकर जाना रात को लड़का आया तो उसने पूछा तुम पढ़ना चाहते हो? उस लड़के ने  उत्तर दिया हाँ पढ़ना चाहता हूं व्यक्ति ने बोला कितना खर्चा होता है पूरा तुम्हारा बताओं, लड़के ने हिसाब लगाकर बताया उसने कहा देखों आगे की शिक्षा तुम्हे दूसरे जगह करनी होगी और वहां तुमको रहने के लिए खर्च लगेगा, खाने के लिए लगेगा सब जोड़ो उसने सब जोड़ा। व्यक्ति ने कहा कल से ये काम छोड़ दो और पढ़ने के लिए चले जाओ तुम्हारा खर्चा मैं करूंगा बालक खुश हो गया फिर व्यक्ति ने कहा देखों मैं तुम्हे दान नहीं दे रहा हूं तुम पढ़-लिखकर जब कमाने लगोगे तो जैसे तुमको बनता है वैसे हफ्तों में पूरा पैसा वापस करना है तुमको ये पहली शर्त है, दूसरी शर्त है अगर किसी की तुम्हारे जैसी परिस्थिति दिखती है  तो जो मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं वैसा तुमको उसके लिए करना पढ़ेगा और तीसरी शर्त है मैंने तुम्हे जो पढ़ाया और खर्च किया ये बात जीवन में किसी तीसरे व्यक्ति को नहीं बताना है, इसे गुप्त रखना है। आगे 5 साल तक प्रतिवर्ष नौ सौ डॉलर उस बच्चे का खर्च उस व्यक्ति ने दिया फिर वो अपनी कहानी बताने वाला कहता है आगे वो बच्चा बड़ा हुआ, अच्छा कमाने लगा और उसने दो ही वर्षों में उसका पूरा पैसा वापस कर दिया. उस शर्त का उसने तुरंत पालन किया दूसरी शर्त का भी वो पालन करता है कठिनाई में फंसे व्यक्तियों की वो सहायता करता है बिना शर्त केवल तीसरी शर्त का पालन उसने नहीं किया। उसने ये कहानी लेख में लिखकर बताई वो जो पैड़ी साफ करने वाला लड़का था मैं ही था ये दायित्व बोध है  मेरे लिए किसी ने किया, मुझे भी करना है अब जीएमआर ग्रुप बड़ा है उसके पास साधन है,

 “साधन नहीं है तो क्या हुआ? इमोशन अगर मन में है तो दायित्व बोध आता है और साधारण व्यक्ति भी काम करता है समाज के लिए करता है “

 वो कॉरर्पोरेट का ही है लेकिन वो अपने सोशल रिस्पांसबिलिटी समझता है कितने अनुभव आप सभी सेवा का काम करते है आपको भी अनुभव आते होंगे,मुझे भी आते है। कारगिल के लड़ाई में सेना के अफसर ने एक अनुभव बताया उन्होंने बताया नागपुर रेलवे स्टेशन के सभी कर्मचारियों ने कारगिल के लिए निधि जमा किया और वो जब सरकार के कारगिल फण्ड में देने कि जब बात हुई तो उसके लिए क्योंकि मैं यहां पोस्टेड था मुझे बुलाया गया मैं भी उपस्थित था कार्यक्रम तो अच्छा हो गया और मैं बाहर निकला तो एक भिखारी मेरे सामने आया और जैसे ही मुझे दिखा तो मैं समझ गया वो भिखारी है. मैंने उसको कहा तुरन्त बगल हटो, हम भीख नहीं देंगे। तो उसने बोला नहीं साहब मैं भीख मांगने नहीं आया हूं मैं भीखारी हूं लेकिन आज भीख मांगने नहीं आया हूं यहां मैंने सुना कि अभी लड़ाई चल रही है उसके लिए पैसा जमा हो रहा है, वहां जमा हो गया है और उन्होंने दे भी दिया है। उसने कहा तीन दिन मैंने भी भीख मांगकर पैसा जमा किया है, मुझे भी देना है। यह जो वापस देने की बात है, वो अपनी सम्पन्नता में नहीं रहती। वो अपनी भावना में रहती है,इमोशन में। यह इमोशन यहां पर काम करता है, नहीं तो आसान है, किसी बड़े फाउंडेशन को ऐसे काम चला लेना, उसका समारोह करना, यह आसान है। लेकिन यहां ऐसा नहीं है, यह भावना है, उस भावना के चलते 25 साल सतत् काम चल रहा है और उस काम को करते समय जैसे जो लाभार्थी है उनको आत्म विश्वास और कुशलता मिलती है, वैसे प्रमाणिकता, संस्कार, और दायित्वबोध भी मिलता है। आवश्यकता उसकी है। समाज में अभाव रहेगा तब तक,अभावग्रस्तों का अभाव दूर करने वाले कार्यकर्ता भी रहेंगे, कार्पोरेट्स भी रहेंगे, अन्य लोग भी रहेंगे। बहुत काम चलता है अपने समाज में।

अपने समाज के बांधवों का दुःख दर्द समझकर, अपना उनके लिए देने वाले, समय देने वाले, धन देने वाले, लोग हैं अपने देश में, क्योंकि यह पहले से हमारा मूल्य है और इसलिए बहुत मात्रा में वो संवेदना हमारे यहां मिलती है। अभी ट्विटर पर एक मैसेज घूम रहा है, वो बड़ा तूफान आया उधर टैक्सास में तो वहां यूस्टन, बोस्टन तीन-चार शहरों में रात में कफ्र्यू लगाना पड़ा। लूटमार हो रही थी। दुकान लूटी जा रहीं थीं, सुन्सान रास्ते, सुन्सान घर, अंदर लोग घुस रहे थे और वस्तुए उठाकर ले जा रहे थे। यह समाचार जब आया, तब श्रीमान महेन्द्र फांउडेशन वाले उन्होंने ट्वीट किया कि ‘यह मैंने पढ़ा और अभी-अभी कुछ देर पहले, मुंबई में भी उस समय बहुत वर्षा थी, जाना-आना बंद हो गया था, तो एयरपोर्ट से मेरे फ्रांसीसी मित्र का संदेश आया कि मेरी फ्लाइट पहले ही आ गई लेकिन पांच घंटे के समय से इस एयरपोर्ट पर पड़ा हूं, मैं देख रहा हूं कि एयरपोर्ट के पीछे वाली झोपड़पट्टी से लोग आ कर जो स्टैंडर्ड लोग हैं उनके लिए खाना, पानी, चाय इसका इंतजाम कर रहे हैं। यह हमारा देश है। इसमें यह काम करने वाले लोग हमेशा मिलेंगे। लेकिन यह काम हमको क्यों करना चाहिए?

मराठी में एक बड़ी सुंदर कविता है, सुमात्रा नामक एक बड़े सुप्रसिद्ध कवि हो गए, उन्होंने लिखी है। ये काम करने वाले लोग हमारे देश में हैं और हम करते रहेंगे। इसकी जरूरत वाले लोग हमारे देश में वह स्वर्णिम समय आ जाए जब हमारे यहां किसी को इसकी जरूरत नहीं रहेगी। तब हम दुनिया में देंगे। दुनिया को देते हैं, हम देने वाले हैं देते रहेंगे। आज हमारे देश में भी अपने ही भाइयों को लेने की जरूरत पड़ रही है। तो सुमात्रा जी लिखते हैं, मराठी में है, मैं हिन्दी बताता हूं, जैसे भाषण कर सकता हूं वैसे बताता हूं, वो कहता है कि – ‘देने वाला देता जाए, लेने वाला लेता जाए, लेते-लेते लेने वाले ने देने वाले के हाथ ले लेकर, जो लेने वाला है वो देने वाले के हाथ लेता है और देने वाला बन जाता है। इस दृष्टि से यहां जो काम मैं देख रहा हूं, जिस भावना से और जिस कार्य क्षमता के साथ चल रहा है, उसके लिए जीएमआर ग्रुप और वर लक्ष्मी फाउंडेशन के छोटे से छोटे कार्यकर्ता से लेकर जीएम और और उनके परिवार तक सबका मैं हृदय से और अत्यंत आनंदित अंतःकरण से अभिनंदन करता हूं और एक शुभकामना देता हूं, इस फाउंडेशन में आकर लाभ लेने वाले लाभार्थी कल जैसी और जितनी उनकी उस समय की क्षमता होगी वैसा उतने देने वाले बन जाएं। आपने जो स्किल सिखाया वो कभी नहीं भूलेंगे, यह बात सही है। आपने जो संस्कार सिखाया है और आप जो दायित्व बोध अपने प्रयास से उनमें भरना का प्रयास कर रहे हैं। वो भी उनके जीवन में उनको सदा स्मरण रहे और वे भी छोटे-मोटे देने वाले बन जाएं। और आज वो कुशलता सीखकर नौकरी खोजने वाले हैं, उनकी वो आवश्यकता है, तरंत की आवश्यकता है। उसका पूर्ण किए बिना वो किसी भी राह पर आगे नहीं बढ़ सकते, उसको उनको पूर्ण करना है। उसका लाभ उनको लेना है, लेकिन कल ऐसा ही आगे बढ़ते-बढ़ते वो नौकरी मांगने वालों से बदलकर नौकरी देने वाले बन जाएं। ऐसा परिवर्तन उनका होना चाहिए।

और एक सुझाव है छोटा सा, थोड़ा अधिक व्यापक विचार करते हुए, अभी यहां बिलकुल ठीक नीति है कि कुशलता इसलिए सिखानी है कि वह अपने हाथ से कुछ काम करे और कमाए। उस दृष्टि से जो चल रहा है वो बिलकुल ठीक है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अगर एक व्यक्ति यदि दो तीन प्रकार की स्किल सीखे तो उसका जीवन भी अधिक सम्पन्न बनेगा, उसको अवसर भी अधिक ज्यादा मिलेगा। क्योंकि अनेक क्षेत्रों में नौकरियां पूरी हो जाती हैं, फिर दस एक साल कोई किसी को नौकरी नहीं दे सकता, फिर खाली होता है, ऐसे चलता रहता है। आदमी हुनर जितना सीखे उतना उसका लाभ है। भाषा और कुशलता जितनी ज्यादा आप सीखेंगे उतना लाभ होगा। उस दृष्टि से क्या जिनकी इच्छा है उनको, जिनको आज तुरंत काम की जरूरत है वो एक स्किल सीखेंगे और फिर अपना रोजगार कमाएंगे। और बिलकुल ठीक बात है, परन्तु वहां कमाई होने के बाद यदि समय मिलता है तो अथवा अभी अगर अवसर है तो, कुछ और अगर स्किल्स वो अगर सीखना चाहे तो उसके सीखने की क्या व्यवस्था हो सकती है इसको भी आप आगे के लिए, एकदम इसको इसके आगे 26वें साल में करना ऐसा नहीं, दो-तीन वर्ष इसके क्रास फार्म बहुत अच्छी तरह देखते हुए और इसको अगर आप अमल में लाएंगे तो हम जिन लोगों के लिए काम कर रहे हैं, उनका सामथ्र्य और ज्यादा बढ़ाने में उनकी सहायता होगी। एक यह सुझाव रखता हूं और फिर एक बार मेरी शुभकामनाओं को दोहराता हुआ और मुझे यह सारा देखने का सुअवसर आपने दिया, इसके लिए आप सबका धन्यवाद करता हुआ मेरे चार शब्द समाप्त करता हूं।

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