दिल्ली। देश के नए मंत्रिमंडल में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा हो चुका है। अमित शाह को देश का नया गृह मंत्री बनाया गया है वहीं राजनाथ सिंह को रक्षामंत्री की जिम्मेदारी दी गई है। निर्मला सीतारमण को इस बार वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है।
पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार में सुषमा स्वराज की जगह विदेश मंत्रालय का महत्वपूर्ण प्रभार दिया गया है। डोकलाम विवाद से लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत की पैरवी तक एस जयशंकर की जबरदस्त भूमिका मानी जाती है।
जयशंकर को यह महत्वपूर्ण दायित्व उस समय दिया गया है जब करीब 16 महीने पहले ही वे विदेश सेवा से सेवानिवृत हुए हैं। उनके समक्ष विश्व स्तर खासकर जी20, शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स संगठन जैसे वैश्चिक मंचों पर भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की उम्मीदों को अमल में लाने की जिम्मेदारी भी रहेगी।
उनके नेतृत्व में मंत्रालय के अफ्रीकी महाद्वीप के साथ सहयोग प्रगाढ़ बनाने पर जोर देने की उम्मीद है जहां चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ा रहा है। 64 वर्षीय जयशंकर न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा के सदस्य हैं। पीएम मोदी मंत्रिपरिषद में जयशंकर को शामिल किया जाना चैंकाने वाला रहा है।
रह चुके हैं विदेश सचिव
सरकार में आने के आठ महीने के अंदर ही मोदी सरकार ने जनवरी 2015 में तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह को पद से हटाकर जयशंकर की नियुक्ति की थी। सुजाता सिंह को हटाने के सरकार के फैसले पर विभिन्न तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी।
हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साल 2013 में जयशंकर को ही विदेश सचिव नियुक्त करना चाहते थे लेकिन अंतिम समय में उन्होंने सुजाता सिंह को यह पद सौंपा।
जेएनयू से विदेश मंत्रालय तक का सफर
जयशंकर ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमफिल करने के बाद जेएनयू से पीएचडी की। विदेश सेवा के 1977 बैच के अधिकारी रहे जयशंकर की पहली पोस्टिंग रूस के भारतीय दूतावास में हुई। वे तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के प्रेस सचिव भी रह चुके हैं।
जयशंकर विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी, अमरीका में भारत के प्रथम सचिव, श्रीलंका में भारतीय सेना के राजनैतिक सलाहकार, टोक्यो और चेक रिपब्लिक में भारत के राजदूत और चीन में भी भारत के राजदूत रह चुके हैं। चीन के साथ बातचीत के जरिये डोकलाम गतिरोध को हल करने में जयशंकर की बड़ी भूमिका मानी जाती है।
जयशंकर ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस समझौते की शुरुआत 2005 में हुई थी और 2007 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। जयशंकर को इसी वर्ष पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
माने जाते हैं पीएम मोदी के करीबी
जयशंकर को लोग भले ही सरप्राइज एंट्री के तौर पर देख रहे हों लेकिन उन्हें पीएम मोदी के करीबी प्रशासनिक अधिकारी माना जाता है। 2012 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में चीन के दौरे पर थे, उसी दौरान जयशंकर उनसे मिले थे। दोनों के बीच हुई उस मुलाकात के बाद से जयशंकर मोदी के विश्वसनीय हो गए।
पीएम मोदी के करीबी होने का अंदाजा इसी बात से चलता है कि बतौर विदेश सचिव जयशंकर का कार्यकाल 2017 में ही समाप्त होने वाला था लेकिन उनके कार्यकाल का समय बढ़ा दिया गया। वो 2015 से 2018 तक विदेश सचिव रहे।
पीएम मोदी की 2018 तक की लगभग हर विदेश यात्रा के दौरान जयशंकर उनके साथ रहे। सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में पीएम मोदी की पहली अमेरिका यात्रा की योजना तैयार करने और इसे सफल बनाने में जयशंकर ने अहम भूमिका निभाई थी।