संघ के वीटो का हुआ असर; राजनाथ सिंह को मिली कैबिनेट समितियों में तरजीह

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दिल्ली। पूर्व गृहमंत्री और वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का साथ मिला और इसी के साथ कैबिनेट की समितियों में उनका रुतबा एक बार फिर कायम हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल में उन्हें पिछले बार के मुकाबले एक पायदान नीचे का मंत्रालय दिया गया। इसके बाद कैबिनेट की आठ महत्वपूर्ण समितियों में से केवल दो में उनको शामिल किया गया। यह खबर आग की रफ्तार से फैली। चारों ओर यह चर्चा होने लगी कि राजनाथ का कद कम किया गया है। यही वजह है कि उन्हें केवल दो समितियों में रखा गया है।

गुरुवार सुबह तक केवल दो समितियों में शामिल किए गए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का नाम शाम तक छह समितियों में जोड़ा जा चुका था। माना जा रहा है कि यह संघ के प्रभाव का असर है। भाजपा के एक सूत्र के मुताबिक, अमित शाह के केंद्र सरकार में गृहमंत्री बनने से सरकार पर पूरी तरह नरेंद्र मोदी और शाह का दबदबा कायम हो चुका है। वे अभी पार्टी के अध्यक्ष भी बने हुए हैं।

केंद्रीय कैबिनेट की सबसे महत्त्वपूर्ण ‘अपॉइंटमेंट्स कमेटी ऑफ द कैबिनेट’ में भी केवल इन्हीं दो नेताओं का नाम होने से यह भी तय हो गया कि आने वाले समय में देश के सर्वोच्च पदों पर होने वाली नियुक्तियों के मामले में भी इन्हीं का फैसला अंतिम होगा। ऐसे में सरकार से लेकर प्रशासनिक मशीनरी तक सबकुछ इन्हीं दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटा रहता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई विश्वासपात्र माना जाने वाला कोई भी नेता (नितिन गडकरी या राजनाथ सिंह) इसमें शामिल नहीं है।

माना जा रहा है कि इन्हीं परिस्थितियों में राजनाथ सिंह का कद कम किये जाने से संघ की तरफ से तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। इसका असर भी देर शाम तक नजर आया और उन्हें दो की बजाय छह कमेटियों में शामिल कर लिया गया। हालांकि, इस दबाव के बाद भी उन्हें सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली अपॉइंटमेंट्स कमेटी ऑफ द कैबिनेट में जगह नहीं मिली है, जो इस बात का संकेत है कि मोदी और अमित शाह अपने काम करने के तरीकों में किसी तरह का हस्तक्षेप स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

‘उत्तर भारत को जगह न देने की गलती सुधारी’

वहीं, पार्टी के एक अन्य नेता के मुताबिक, पूर्व में भी प्रधानमंत्री और संघ के बीच दूरी होने की अफवाहें फैलाई गईं थीं। नेता के मुताबिक, राजनाथ सिंह की उपेक्षा की बात भी ठीक नहीं है क्योंकि देश की सुरक्षा पर सर्वोच्च कमेटी ‘कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी’ में वे पहले ही शामिल रहे हैं। उनके मुताबिक, दरअसल कमेटियों के गठन में दक्षिण और पश्चिम भारत को बहुत अधिक तरजीह मिल गई थी।

ज्यादातर समितियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह दिख रहे हैं। नितिन गडकरी और पीयूष गोयल को पश्चिम के नेता के रूप में देखा जा रहा है, जबकि निर्मला सीतारमण, सदानंद गौड़ा दक्षिण का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

भाजपा की जीत में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार सहित पूरे उत्तर भारत की उपेक्षा हो गई थी। बिहार के नेता रविशंकर प्रसाद और रामविलास पासवान को कैबिनेट समितियों में जगह जरूर मिल गई है लेकिन उनका चेहरा बड़े जनाधार वाले नेता का नहीं है। जबकि राजनाथ सिंह अपेक्षाकृत मजबूत चेहरे हैं और उन्हें एक वर्ग का अच्छा नेता भी माना जाता है।

उनकी प्रोफाइल भी कैबिनेट में शामिल किसी भी नेता से ज्यादा मजबूत है क्योंकि वे केंद्र में कई बार मंत्री रहने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए, कोई नकारात्मक संदेश मतदाताओं में न जाए, राजनाथ सिंह को ज्यादा महत्त्वपूर्ण भागीदारी देने का निर्णय लिया गया।

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