भारत में छुआछूत की समस्या इस्लाम के आने के बाद शुरू हुई। ‘दलित’ शब्द पर कहा कि अंग्रेजों ने एक साज़िश के तहत समाज को बांटने के लिए इस शब्द का आविष्कार किया। संघ एक ऐसा समाज चाहता है, जहां कोई जात-पात नहीं हो, अर्थात् जातिविहीन समाज हो।
प्राचीन काल में ऊंची और नीची जातियां तो थीं, लेकिन छुआछूत नहीं था। गौ का मांस खाने वालों को अछूत माना जाता था। आम्बेडकर भी ऐसा ही मानते थे। कई ऐसे उदाहरण हैं जिनके कारण कभी ‘फॉरवर्ड’ जाति के लोग रहे, आज ‘बैकवर्ड’ हो गए हैं। “आज मौर्य जाति के लोग ‘बैकवर्ड’ कहलाते हैं, लेकिन कभी वे ‘फॉरवर्ड’ थे। बंगाल में पाल लोग राजा हुआ करते थे, लेकिन आज वे भी ‘बैकवर्ड’ कहलाते हैं। इसी प्रकार भगवान बुद्ध की जाति शाक्य भी आज ओबीसी श्रेणी में आती है। हमारे समाज में ‘दलित’ शब्द था ही नहीं। ये ब्रिटिश आक्रांताओं की ‘फूट डालो और राज करो’ की साज़िश का एक हिस्सा था। यहां तक कि हमारी संविधान सभा ने भी ‘दलित’ शब्द का प्रयोग करने से मना कर दिया। भारत में इस्लामिक शासनकाल एक ‘अन्धकार युग’ था, लेकिन हमारी आध्यात्मिक जड़ों के कारण हम किसी तरह बचे रहे।” चन्द्रगुप्त मौर्य पहले शूद्र थे, लेकिन बाद में अखंड भारत के सम्राट बने। महर्षि वाल्मीकि भी शूद्र थे, लेकिन बाद में एक महान ऋषि हुए।