दिल्ली। अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई अब इसका फैसला लिखने में व्यस्त हैं। वह रात में भी काम कर रहे हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई दो मामलों की सुनवाई में ऐसा कुछ हुआ जिससे इस बात का पता चलता है। बता दें कि चीफ जस्टिस गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
चीफ जस्टिस ने सोमवार सुबह हुई दो मामलों की सुनवाई के दौरान इशारों-इशारों में फैसला लिखने में व्यस्त होने का जिक्र किया। पहला मामला मुंबई कोस्टल रोड का था। इसकी जल्द सुनवाई की मांग करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस की बेंच से कहा कि पहले आप लोग व्यस्त थे। इस पर चीफ जस्टिस ने जवाब देते हुए कहा कि हम तो अभी भी व्यस्त हैं।
इसके बाद दूसरे मामले में अदालती कार्रवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग के मुद्दे पर एक वकील ने कोर्ट में कहा कि सूरज की रोशनी रोग दूर करती है। इस पर चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि रोशनी हो या नहीं, हम काम करते हैं। कल रविवार था। मैं रात 9.30 बजे तक अपनी मेज पर था।
चीफ जस्टिस की इन बातों से साफ है कि वह अयोध्या विवाद मामले का फैसला लिख रहे हैं। न्यायाधीश गोगोई पहले ही कह चुके हैं कि वह सेवानिवृत्त होने से पहले इस अयोध्या मामले पर फैसला आते देखना चाहते हैं। कारण कि यह मामला काफी लंबे से समय से अदालती कार्यवाही में उलझा हुआ है।
देश की भावी पीढ़ियों पर असर डालेगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या मामले से मुस्लिम पक्षकारों ने कहा है कि यह फैसला भावी पीढ़ियों पर असर डालेगा। यह राज्य व्यवस्था को नया रूप देगा। उत्तरप्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड सहित मुस्लिम पक्षकारों ने सोमवार को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर लिखित दलीलें कोर्ट में दायर कीं।
विभिन्न पक्षकारों और कोर्ट की रजिस्ट्री ने जताई आपत्ति
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मुस्लिम पक्ष को लिखित नोट दाखिल करने की इजाजत दी थी। मुस्लिम पक्षकारों के वकील ने मांग की थी कि उन्हें राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट रिकाॅर्ड पर लाने की इजाजत दी जाए। हालांकि लिखित नोट सीलबंद लिफाफे में दाखिल करने पर विभिन्न पक्षकारों और कोर्ट की रजिस्ट्री ने आपत्ति जताई है।
वकील राजीव धवन ने तैयार किया नोट, लिखीं ये बातें
वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने मुस्लिम पक्ष की ओर से यह नोट तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि अदालत का फैसला चाहे जो हो, यह भावी पीढ़ियों और राज्य व्यवस्था पर असर डालेगा।
यह देश के करोड़ों नागरिकों और 26 जनवरी, 1950 को लोकतंत्रिक राष्ट्र घोषित किए जाने के बाद सांविधानिक मूल्यों को अपनाने और उसमें विश्वास रखने वालों के दिमाग पर असर डाल सकता है।
नोट में कहा गया है कि इस फैसले का दूरगामी असर होगा। ऐसे में कोर्ट इसके परिणामों पर विचार करते हुए राहत में ऐसा बदलाव करे, जिसमें संवैधानिक मूल्यों की झलक दिखे।