देहरादून जिले की विधानसभा सीटों का क्या है गणित,कौन किस पर भारी।

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उत्तराखण्ड रिपोर्ट के दर्शकों के लिए अब हर हप्ते एक एक  विधानसभा का सिलसिलेवार तरीके से विश्लेषण कर एक रिपोर्ट पेश कर रहें हैं।इस रिपोर्ट में  आपको विधानसभा की समस्याओं सहित विधायक के रिपोर्ट कार्ड का पूरा विश्लेषण मिलेगा

 

देहरादून जिले में पड़ने वाली विधानसभाओं में 14 लाख वोटर आने वाले चुनाव की दिशा निर्धारित करेंगे,देहरादून जिले की सभी विधानसभाओं में 1481874 वोटर इस समय वोट डालेंगे,जिनमे 77623 पुरुष मतदाता जबकि 705658 महिला वोटर है,जबकि 9805 सर्विस वोटर है देहरादून जिले की विधानसभा सीटों का क्या है गणित,कौन किस पर भारी। इस समय के चुनाव में प्रदेश का भाग्य लिखने को तैयार हैं।

 

1.

विधानसभा धर्मपुर

यह क्षेत्र साल 2008 के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन आदेश से अस्तित्व में आया। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 120,998 मतदाता थे।वर्तमान धर्मपुर विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 182921 है। जिसमें पुरुष 99547 तो महिला मतदाताओं की संख्या 83374 है।

राजनीतिक तानाबाना

धर्मपुर विधानसभा देहरादून जिले में पड़ती है. यह सीट हरिद्वार संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है. 2008 में हुए परिसीमन के बाद धर्मपुर को विधानसभा सीट बनाया गया था. 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विनोद चमोली विधायक चुने गए थे.

2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार दिनेश अग्रवाल विधायक चुने गए थे. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रकाश सुमन ध्यानी को हराया था. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार दिनेश अग्रवाल को 37,884 वोट मिला था, जबकि भाजपा के प्रकाश सुमन ध्यानी को 28,464 वोट मिला था. तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार सलीम अहमद थे, जिन्हें 3,805 वोट मिला था.

2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार विनोद चमोली इस सीट से विधायक चुने गए थे. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार दिनेश अग्रवाल को हराया था. इस चुनाव में भाजपा के विनोद चमोली को 53,828 वोट मिला था, जबकि कांग्रेस के दिनेश अग्रवाल को 42,875 वोट मिला था. तीसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार नूर हसन थे, जिन्हें 4,117 वोट मिला था.

कुल मिलाकर इस सीट पर अभी भाजपा का कब्जा है पर धर्मपुर विधानसभा हर पांच साल में विधायक बदलने का रिकार्ड रहा है हालांकि मेयर से विधायक बने विनोद चमोली की यहां अच्छी पकड़ मानी जाती है।हालांकि कांग्रेस भी इस सीट पर लगातार अपनी मजबूती में जुटी है।अगर इस बार भी भाजपा विनोद चमोली और कांग्रेस भी दिनेश अग्रवाल पर ही पूर्व की भांति दावँ लगती है तो मुकाबला दिलचस्प होगा,अभी भाजपा के विनोद चमोली विधायक है जो दो बार देहरादून के मेयर भी रह चुके हैं ऐसे में उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को लगातार दो बार चुनावी शिकस्त दे चुके कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल का कांग्रेस में बड़ा कद है। विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक पूरी कर चुके अग्रवाल पर विपक्ष ये आरोप लगाता है कि कैबिनेट मंत्री बनने के बावजूद धर्मपुर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। दिनेश अग्रवाल, मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी माने जाते हैं।

 

 

2.
डोईवाला विधानसभा

डोईवाला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखंड के 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. देहरादून जिले में स्थित ये निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है. 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर पहला चुनाव साल 2012 में हुआ, 2012 के आंकड़ों के अनुसार डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या 1 लाख 7 हजार 15 है.

 

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बीजेपी विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने जीता. निशंक का इस क्षेत्र में खासा प्रभाव था. वहीं उनके धुर विरोधी कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट भी कड़ी टक्कर देते रहे हैं.

साल 2014 में निशंक के लोकसभा चुनाव लड़ने से खाली हुई इस सीट पर बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को उतारा. त्रिवेंद्र इससे पहले रायपुर सीट से चुनाव लड़ा करते थे. दो बार के विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत को उपचुनाव में कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट ने पटकनी दे दी. इससे पहले त्रिवेंद्र दो बार रायपुर विधानसभा से विधायक रह चुके हैं. जबकि वह लगातार दो चुनाव 2012 और 2014 उपचुनाव हारे हैं.

 

साल 2017 के चुनाव में इस सीट से फिर हीरा सिंह और त्रिवेंद्र आमने सामने हुए. इस बार त्रिवेंद्र ने बिष्ट को करारी मात दी. त्रिवेंद्र के मुख्यमंत्री बनने से यह सीट वीआईपी कहलाने लगी, यहां मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिवेंद्र ने कई विकास योजनाओं को शुरू किया. 2012 के आंकड़ों के अनुसार डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या 1 लाख 7 हजार 15 है.

 

डोईवाला के लिए पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने करीब 150 घोषणाएं की थी, जिसमें से अस्सी फीसदी पूरी हो चुकी हैं. प्रदेश के अन्य विधानसभा क्षेत्रों की बात की जाए तो डोईवाला में रिकार्ड घोषणाएं हुई. क्षेत्र में विकास को लेकर मुख्यमंत्री ने कोई कसर नहीं छोड़ी, बावजूद इसके निकाये चुनाव में यहां बीजेपी को करारी मात मिली. यह त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए बड़ा झटका था, विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने के बावजूद उनके कामकाज से जनता संतुष्ट नहीं आई।

 

 

 

 

3.

कैंट विधानसभा

 

देहरादून कैंट सीट उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से एक है. यह देहरादून जिले में पड़ती है और टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरबंस कपूर लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरबंस कपूर विधायक चुने गए थे. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र सिंह को हराया था. इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार हरबंस कपूर को 29,719 वोट मिला था, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार देवेंद्र सिंह को 24,624 वोट मिला था. 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरबंस कपूर लगातार दूसरी बार इस सीट से विधायक चुने गए. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सूर्यकांत धस्माना को हराया था. इस चुनाव में भाजपा के हरबंस कपूर को 41,142 वोट मिला था, जबकि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सूर्यकांत धस्माना को 24,472 वोट मिला था.हालांकि अभी हाल ही में उनका निधन होने से भाजपा को तगड़ा झटका लगा है।

 

 

राजनीतिक तानाबाना

 

कैंट विधानसभा का इतिहास बेहद पुराना है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले यह विधानसभा देहरादून शहर के नाम से जानी जाती थी. इस विधानसभा पर पिछले 35 सालों से बीजेपी के हरबंश कपूर विधायक थे. हरबंश कपूर का नाम उत्तराखंड की राजनीति में बेहद अहम माना जाता रहा है. वह एकमात्र ऐसे विधायक थे, जो कि सबसे लंबे समय से विधायक पर बने हुए थे.

 

 

उन्होंने इसे विधानसभा सीट पर 9 बार चुनाव लड़ा. उसमें से केवल पहली दफा 1985 में वह चुनाव हारे थे. उसके बाद लगातार आठ बार इस विधानसभा सीट पर चुनाव जीते. उन्होंने 1989 में हीरा सिंह बिष्ट, 1991 में विनोद रमोला, 1993 में दिनेश अग्रवाल, 1996 में सुरेंद्र अग्रवाल को हराया था. इसके बाद इस विधानसभा का परिसीमन हुआ. जिसके बाद इसका नाम देहरा खास विधानसभा रखा गया. उसके बाद भी हरबंश कपूर का जलवा इस सीट पर बरकरार रहा.

 

2002 में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद हरबंश कपूर ने संजय शर्मा, 2007 में लालचंद शर्मा को हराया. इसके बाद फिर एक बार इस विधानसभा सीट का परिसीमन हुआ. तब इसे देहरादून कैंट विधानसभा बना दिया गया. जिसके बाद 2012 में हरबंस कपूर ने देवेंद्र सिंह सेठी और 2017 में कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना को हराया. अब अफसोस इस बात का है कि पिछले 35 सालों से इस सीट पर अपना दबदबा रखने वाले हरबंश कपूर का विधानसभा चुनाव से ठीक पहले निधन हो गया है. जिसके बाद अब इस सीट का सिकंदर कौन होगा ये बड़ा सवाल है.

 

 

इस विधानसभा पर अब एक लोकप्रिय नेता ना रहने के बाद कई मायनों में सियासी समीकरण बदले हुए हैं. विपक्ष की ओर से अगर बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सूर्यकांत धस्माना एक बार फिर से इस विधानसभा में सक्रिय हैं. सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि अब तक इस विधानसभा के विधायक रहे हरबंश कपूर का कद काफी ऊंचा था. वह वरिष्ठ और अनुभवी नेता थे. उनके अनुभव और उनके कद की तुलना किसी और से करना उचित नहीं है.

 

कैंट विधानसभा में तकरीबन 1.45 लाख मतदाता हैं. कैंट विधानसभा एक ऐसी विधानसभा है, जिसमें फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, इंडियन मिलट्री अकेडमी, कैंटोनमेंट बोर्ड, वाडिया इंस्टीट्यूट सहित कई केंद्रीय शिक्षण और शोध संस्थान आते हैं. दूसरी तरफ कैंट विधानसभा में वसंत बिहार जैसी पॉश कॉलोनियां भी मौजूद हैं. ऐसे में इस विधानसभा में सुरक्षा एक अहम और संवेदनशील मुद्दा है.

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