रुद्रप्रयाग। केदारनाथ क्षेत्र में समुद्रतल से 14 हजार फीट की ऊंचाई पर इन दिनों दुर्लभ प्रजाति का नील कमल अपनी आभा बिखेर रहा है। विलुप्ति की ओर अग्रसर इस पुष्प के लगभग छह वर्ष बाद इतनी बड़ी तादाद में नजर आने से वन विभाग खासा उत्साहित है। अब उसे उच्च हिमालयी क्षेत्र में विलुप्तप्राय प्रजाति के पुष्प व पौधों के लिए नई संभावनाएं दिखाई दे रही हैं।
पृथ्वी के बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग का असर जीव-जंतु, पेड़-पौधे, वनस्पति सभी पर पड़ रहा है। खासकर उच्च हिमालयी क्षेत्र में इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। कई पुष्प व पौधे विलुप्ति की कगार पर हैं। इन्हीं में से एक है नील कमल। यह राज्य पुष्प ब्रह्मकमल की तरह दुर्लभ प्रजाति का पुष्प है।
हिमालयी क्षेत्र में चार प्रकार के कमल पाए जाते हैं, जिनमें ब्रह्मकमल, नील कमल, फेन कमल व कस्तूरा कमल शामिल हैं। खास बात यह कि इस बार बड़ी तादाद में खिला नील कमल केदारनाथ से आठ किमी ऊपर वासुकीताल के आस-पास अपनी मनमोहक छटा बिखेर रहा है। ऐसा भी माना जा रहा है कि यह कोरोनाकाल में बीते दो वर्षों से इस क्षेत्र में पर्यटकों की मौजूदगी शून्य होने का असर भी हो सकता है।
वहीं, क्षेत्र में ब्रह्मकमल के साथ नील कमल खिलने से प्रकृति की सुंदरता भी निखर उठी है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया कि वह वन विभाग की टीम के साथ वासुकीताल क्षेत्र के भ्रमण पर गए थे। वहां ब्रह्मकमल के साथ नील कमल भी बहुतायत में खिला है। लगभग छह वर्ष बाद इतनी बड़ी तादाद में यहां नील कमल दिखाई दे रहा है, यह निश्चित रूप से शुभ संकेत है।
औषधीय गुणों से भरपूर है नील कमल
डीएफओ अमित कंवर बताते हैं कि यह पुष्प समुद्रतल से 3600 मीटर से लेकर 4500 मीटर की ऊंचाई पर जून से लेकर सितंबर के मध्य तक खिलता है। इसके पौधे की ऊंचाई 70 से 80 सेमी तक होती है। बताया कि नील कमल का वानस्पतिक नाम जेनशियाना फाइटोकेलिक्स है। इसकी जड़, तना, पत्ती व फूल विभिन्न प्रकार की औषधियों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं।