बल वार्मिंग के चलते खतरे में पहाड़ों की जैव विविधता, खतरनाक साबित हो रही छेड़छाड़ 

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पृथ्वी की प्राकृतिक संरचना से छेड़छाड़ बेहद खतरनाक साबित हो रहा है, बावजूद इसके पृथ्वी पर मानवीय दखल में तेजी से बढ़ोतरी होती जा रही है। पृथ्वी के संरचनात्मक ढांचे जैसे जलवायु, जैव विविधता, जल स्रोत, जैव संपदा और पर्यावरण में विगत दशकों में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। जो पूर्ण रूप से मानव जनित हैं।जैव प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. मणिंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान वैश्विक स्तर पर 2.2 प्रतिशत तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में कमी पाई गई। जबकि पर्यावरण के बिगड़ते हालात में ग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन की भूमिका लगभग 45 प्रतिशत है, जो जैव विविधता, जल स्रोत, ग्लेशियर, कृषि उत्पादकता, मानव जीवन तथा स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहे है।उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन (ग्लोबल वार्मिंग) के कारण जहां पृथ्वी के तापमान में तेजी से इजाफा हुआ है, वहीं प्रदेश में पाई जाने वाली पादपों की कई प्रजातियां संकट के कगार पर हैं। जिससे पृथ्वी की जैव विविधता खतरे मे आ गई है।

नैनीताल के पटवाडांगर में पाए जाने वाला पटवा (मिजोट्रोपिस पिलेटा) व हल्द्वानी के आस-पास में पाया जाने वाला हल्दू (हल्दीना कार्डिफोलिया) के वृक्ष आज ज्वलंत उदाहरणो मे से एक हैं। जिनको बदलती जलवायु ने संकटग्रस्त श्रेणी में ला खड़ा किया है।कभी हल्द्वानी व आस-पास के क्षेत्र में हल्दू के वन बहुतायत में पाए जाते थे, वह आज विलुप्ति के कगार पर हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बीजों से नए पौधों का प्राकृतिक रूप से संवर्धन आसानी से नहीं हो पाना है। हल्दू के बीज बहुत ही माइनर होते हैं, जो वातावरण में हो रहे अप्रत्याशित परिवर्तन से उग नहीं पा रहे हैं।इसके बीज अंकुरण के समय ज्यादा पत्तियों से दबे होने के कारण पौधे का रूप लेने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार पटवा का भी जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक संवर्धन आसानी से नहीं हो पाता। समय रहते यदि कोई ठोस उपाय नहीं किया गया तो शीघ्र ही इन दोनो प्रजातियों को विलुप्तप्राय श्रेणी में आने की संभावना है।

पृथ्वी के बिगड़ते हालात में आज विकास के बजाय पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देना ज्यादा हितकर है। पृथ्वी के पुनरोद्धार एवं उसको पुराने रूप में दोबारा स्थापित करने के लिए उन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्राथमिकता से कार्य करने की आवश्यकता है, जो पृथ्वी के मुख्य प्राकृतिक घटक है।

छोटे जलस्रोतों का जीर्णोद्धार, वनों के अंधाधुन कटान पर रोक, पौधरोपण को बढ़ावा, ग्लोबल वार्मिंग के कारको पर तत्काल रोक, जैव विविधता के संरक्षण पर जोर, अनियंत्रित विकास पर रोक, प्लास्टिक पर प्रतिबंध आदि क्षेत्रो में धरातल पर कार्य करके कुछ हद तक पृथ्वी के पुराने स्वरूप को धीरे-धीरे दोबारा स्थापित किया जा सकता है, जो इस वर्ष  पृथ्वी दिवस का मुख्य थीम भी है।

 

 

 

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