लोगों को नहीं भा रही टिहरी झील की मछलियां, न ही स्वादिष्ट और अधिक कांटे भी

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टिहरी बांध की झील मत्स्य पालन के लिए मुफिद नहीं है। झील से निकाली जा रही मछलियों की बाजार में ज्यादा डिमांड नहीं है। इसका प्रमुख कारण झील की मछलियां खाने में ज्यादा स्वादिष्ट नहीं है। साथ ही इन मछलियों में कांटे भी अधिक होते हैं। वहीं झील की गहराई ज्यादा होने के कारण मछलियां निकालना भी चुनौती भरा काम है।

टिहरी बांध की झील पिलखी से लेकर चिन्यालीसौड तक 42 वर्ग किमी में फैली है। शुरूआती दौर में सरकार ने झील को मत्स्य आखेट के लिए बेहतर स्थान बताया था। मत्स्य पालन विभाग ने 2014-15 में झील में स्थित मछलियां को व्यवसाय के रूप में करने का काम शुरू किया था। इसके लिए एक निजी फर्म को मत्स्य आखेट का काम तीन साल के लिए दिया था। साथ ही 2015 में रोहू मछली के एक करोड़ बीज भी झील में डाले गए थे, लेकिन झील में पर्याप्त मछलियां न होने से संबंधित फर्म ने दो साल में ही मत्स्य आखेट का काम छोड़ दिया था।

इसके बाद सरकार ने 2018 में डिवाइन क्राप एंड एलाइड प्रोडक्टस लि. को पांच साल के लिए झील से मछलियां निकलाने का काम दिया था। फर्म ने पहले साल सरकार को 62 लाख और इसके बाद प्रत्येक वर्ष इस धनराशि में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी कर राजस्व देना है। बावजूद झील में अच्छी प्रजाति की मछलियां न होने, झील की गहराई अधिक होने से मछलियां को निकालने में आ रही परेशानियाें समेत अन्य दिक्कतों के कारण घाटे में चल रही है। गोल्डन, ग्रॉस, कॉमन क्राफ प्रजाति की मछलियां झील में हो रही है, उनके दाम बाजार में बहुत कम है। यह मछलियां केवल 90 से 100 रुपये किलो ही बिक रही हैं। यह मछलियां अन्य के अपेक्षा ज्यादा स्वादिष्ट नहीं होती है। इन में कांटे भी अधिक होते हैं, जिन्हें लोग खाने में ज्यादा पसंद नहीं करते हैं। जबकि रोहू कतला, नैन आदि की प्रजातियां रुकते पानी में नहीं होती है।

एक दिन में केवल एक से डेढ़ क्विंटल मछलियां ही निकाली जा रही है। झील से निकाली जा रही मछलियाें की बाजार में दर कम होने के साथ ही डिमांड भी ज्यादा नहीं है। अब तक करीब तीन करोड़ से अधिक का घाटा उठा चुके हैं।
-नत्थी सिंह बर्तवाल, मैनेजर, डिवाइन क्राप एंड एलाइड प्रोडक्टस टिहरी

झील में रोहू मछलियां के करीब एक करोड़ से अधिक के बीज डाले गए थे, लेकिन उनकी पैदावार ज्यादा नहीं हो पाई है। रोहू, कतला, नैन आदि प्रजाति की मछलियां के लिए चलता पानी चाहिए होता है। -आमोद नौटियाल, मत्स्य निरीक्षक, टिहरी

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