टिहरी। संवाददाता। वैसे तो सरकार शहीदों के सम्मान का खूब ढिंढोरा पीटती है, लेकिन सिस्टम की लापरवाही के चलते एक शहीद की विधवा 57 वर्षों से पेंशन के लिए तरस रही है। जवानी तो किसी तरह मेहनत मजदूरी करके गुजर गई, लेकिन जीवन के आखिरी पड़ाव में कोई सहारा न होने से लाचार शहीद की विधवा दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।
भिलंगना ब्लॉक के नैलचामी पट्टी के मलड़ गांव के कालीराम 1965 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गए थे। शादी के मात्र 8 माह बाद ही उनकी पत्नी भवानी देवी विधवा हो गई। शहीद कालीराम 9वीं पंजाब रेजीमेंट में थे। भवानी देवी को कई दिनों के बाद उनके पति के शहीद होने की सूचना मिली थी। जिसके बाद कई बार सैनिक कल्याण बोर्ड से 1999 में उन्हें आर्मी वेलफेयर फंड से कुछ अनुदान के अलावा कोई सुविधा नहीं मिल पाई।
मामला संज्ञान में आने के बाद जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के भिलंगना के प्रतिनिधि रघुवीर सिंह भंडारी विधवा की मदद के लिए आगे आए। जिसके बाद उन्होंने उनके कागजात बनाकर रक्षा मंत्रालय भारत सरकार को भेजे। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी उनका वाद निशुल्क लड़ने का निर्णय लिया। साथ ही घनसाली पहुंचे उत्तराखंड के न्यायाधीश राजीव शर्मा के संज्ञान में मामला आने के बाद शहीद की विधवा को पेंशन के साथ ही अन्य सुविधाएं मिलने की उम्मीद जगी है।